इसरो के रॉकेट चांद और मंगल तक पहुंच रहे हैं। न्यूक्लियर पॉवर के तौर पर भारत की पहचान दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में होने लगी है। हम भारत की उंचाइयों, कामयाबियों पर इतराते नहीं फिरते हैं। होमी जहांगीर भाभा को हम फॉदर ऑफ़ इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम और विक्रम साराभाई को हम फॉदर ऑफ इंडियन स्पेस प्रोग्राम के नाम से जानते तो हैं, मगर इससे आगे का हमें कुछ भी पता नहीं है।
हैरान करने वाली बात ये है कि जब आज़ादी के 20 साल बाद देश अनाज, बिजली, पानी की लड़ाई लड़ रहा था, तब कुछ ऐसे ज़िद्दी साइंटिस्ट थे, जिन्होंने भारत में सूचना, विज्ञान और न्यूक्लियर पॉवर की ज़रूरत को समझा और अपनी सरकार से टकराकर, दुश्मन देशों की साजिशों से टकराकर, उन्होंने कम से कम बजट में इस सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाया।
Rocket Boys 2 से पहले थोड़ी बात पहले सीजन की
रॉकेट ब्वॉज़ 2 (Rocket Boys 2) का इंतज़ार पूरे एक साल बाद ख़त्म हुआ है। पहले सीजन में हमने देखा था कि होमी जहांगीर भाभा ने कैसे विक्रम साराभाई को अपने साथ जोड़ा। विक्रम साराभाई ने कैसे भारत का पहला रॉकेट लॉन्च किया और फिर होमी साराभाई के साथ न्यूक्लियर बॉम्ब बनाने को लेकर उनके बीच दूरियां आ गईं।
जहां खत्म हुई थी वहीं से शुरू होता है सेकंड सीजन
सेकंड सीज़न की शुरुआत यहीं से होती है। होमी भाभा, अमेरिकन इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए से बचते-बचाने, न्यूक्लियर रिएक्टर को इलेक्ट्रीसिटी की आड़ में छिपाकर भारत को न्यूक्लियर पॉवर बनाने का सपना बुन रहे हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तबीयत बिगड़ती जा रही है, ऐसे में मोरारजी देसाई के डायरेक्शन पर स्पेस प्रोग्राम और न्यूक्लिर प्रोजेक्ट दोनो का बजट काटा जा रहा है। पंडित नेहरू की मौत के साथ, देश की राजनीति में भूचाल आ जाता है।
होमी भाभा के न्यूक्लियर बम बनाने का प्लान, देश के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री को बिल्कुल मुफीद नहीं लगती। 1965 में पाकिस्तान के हमले के बाद वो शांति समझौते के लिए ताशकंद जाते हैं, जहां शास्त्री को पता चलता है कि अमेरिका, और चाइना दोनों ही दुनिया में अपना पॉवर बैलेंस बनाए रखने के लिए, पाकिस्तान को न्यूक्लियर बम बनाने में मदद कर रहे हैं। ये जानकर लाल बहादुर शास्त्री को अहसास होता है कि होमी भाभा का प्रोजेक्ट रोकना उनकी गलती थी। इंदिरा गांधी से आख़िरी फोन कॉल पर वो इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की बात करते हैं, मगर फिर ताशकंद में ही उनकी हत्या कर दी जाती है।
Rocket Boys 2: ऐसे हुआ देश में पहले परमाणु बम का परीक्षण
शास्त्री के बाद इंदिरा, देश की कमान अपने हाथों में लेती हैं और न्यूक्लियर पॉवर पर फिर से काम शुरू हो जाता है। तमाम राजनीतिक अड़चनों के साथ होमी भाभा अपने प्लान पर काम करते रहते हैं, लेकिन उनके अपने साथी की गद्दारी के चलते विएना में होने वाले न्यूक्लियर पीस मीटिंग में जाते वक्त, उनके प्लेन में ब्लॉस्ट होता है। इस हादसे के बाद विक्रम साराभाई, अपने उसूलों के उलट… हालात के चलते न्यूक्लियर प्रोजेक्ट को पूरा करने की ज़िम्मेदारी लेते हैं और सीआईए के नाक के नीचे, पोखरन में इसकी तैयारी होती है। मगर इस मिशन के पूरा होने के पहले ही हार्ट अटैक से उनकी मौत हो जाती है। इसके बाद डॉक्टर राजा रमन्ना और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम किन हालात में देश में पहले परमाणु बम का सफ़ल परीक्षण करते हैं।
रॉकेट बॉयज 2 (Rocket Boys 2) की इस पूरी कहानी में होमी भाभा की ज़िंदगी और शख़्सियत का मिजाज़ है। विक्रम साराभाई और मृणालिनी साराभाई की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव है। देश में दूरदर्शन और उसके पहले कार्यक्रम कृषि दर्शन का ऐतिहासिक क्षण है और साथ ही ताकतवर देशों, भारत के खिलाफ़ साजिशों का ऐसा ताना-बाना है, जिसे देखकर आप हैरान हो जाएंगे कि किन मुश्किलों से टकराकर होमी भाभा, विक्रम साराभाई और एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत को विज्ञान में सक्षम और न्यूक्लियर पॉवर बनाया है।
Rocket Boys 2: डायरेक्शन, सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड
50-50 मिनट के 8 एपिसोड के इस सेकंड सीज़न में, डायरेक्टर अभय पन्नु ने रॉकेट बॉयज़ की कहानी को बहुत खूबी से उकेरा है। हां कहीं-कहीं ये ज़्यादा पर्सनल होता है, मगर साइंटिस्ट भी तो इंसान है और उनके इर्द-गिर्द क्या हो रहा है, इसे देखे बिना, ये किसी डॉक्यूमेंट्री जैसा ही नीरस होता है। सिनेमैटोग्राफर हर्षवीर ओबेरॉय ने रॉकेट बॉयज़ मे 60 के दशक की ऐसी दुनिया रची है, जो आपको टाइम मशीन में पीछे ले जाती है और कहानी का हिस्सा बना देती है। सीरीज़ का बैकग्राउंड स्कोर शानदार है। खटकती नहीं। निखिल आडवाणी के बैनर तले निकलने वाला रॉकेट बॉयज़, एक ही हफ्ते में, दूसरा शाहकार है, मिसेज चैटर्जी वर्सेज़ नॉर्वे में भी उन्होने झंडे गाड़े हैं।
Rocket Boys 2…कलाकारों का जीवंत अभिनय
होमी जहांगीर भाभा के किरदार में जिम सरभ ने इस किरदार को ज़िंदा कर दिया है, उनका स्टाइल, उनका मिजाज़ देखकर आपको लगता है कि आप होमी भाभा को ही देख रहे हैं। ईश्वाक सिंह के चेहरे की मासूमियत और इरादों की मज़बूती, उन्हे विक्रम साराभाई के आईने की सूरत जैसा बना देते हैं। एपीजे अब्दुल कलाम बने अर्जुन राधाकृष्णन को देखकर जैसे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मानो आप अपने सामने इतिहास बनता देख रहे हैं। मृणालिनी साराभाई के किरदार में रेज़िना कैसांड्रा शानदार है, उसकी स्क्रीन प्रेजेंस जादूई है। पिप्सी के किरदार में सबा आज़ाद के किरदार में सेकेंड सीज़न में ज़्यादा वैरिएशन्स है। रज़ा बने दिबेन्दु भटाटाचार्या कमाल के एक्टर हैं।