मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को हैदराबाद में रामानुज सहस्त्राब्दी समारोह में हिस्सा लिया। यहां श्रीरामनगरम, जीवा कैंपस में रामानुजाचार्य की प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी के दर्शन किए। इस दौरान शिवराज ने भारत का मतलब भी समझाया और कहा कि हिंदुत्व ही राष्ट्रीत्व है। इसमें दो मत है ही नहीं। उन्हें यह बात कहने में संकोच नहीं है। ओंकारेश्वर में बनने वाले स्टैच्यू ऑफ वननेस से भी यही संदेश जाएगा।
सीएम शिवराज ने कहा, हम जैसे लोगों को भी यह स्थल प्रेरणा और दिशा देगा। भारत के नौजवान यहां आएंगे। आधुनिक पीढ़ी भी आएगी। यहां से संदेश लेकर जाएगी तो उनकी दृष्टि बदल जाएगी। राजनीति वाले भी यह बात सीख जाएं तो देश का कल्याण होगा। मैं भी प्रेरणा लेकर जा रहा हूं। मैं भी राजनीतिक कार्यकर्ता हूं। इस विचार को हम कैसे बढ़ाएं। यह भारत का विचार है। सनातन विचार है। इसे सरकार की योजनाओं में जनता का कल्याण और कैसे बेहतर किया जाए। यह बात यहां से सीखकर जाएंगे। भारत को तो बढ़ना ही है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ सीएम शिवराज और उनकी पत्नी साधना सिंह।
स्टैच्यू ऑफ वननेस ओंकारेश्वर में बनने वाला है
शिवराज ने यहां संतों से आशीर्वाद मांगा है। उन्होंने बताया कि स्टैच्यू ऑफ वननेस ओंकारेश्वर में बनने वाला है। हम सब एक ही चेतना के अंग हैं। एक चेतना सभी में है। ओंकारेश्वर से भी यह संदेश जाए। भारत की संत परंपरा का प्रवाह नित्य निरंतर प्रवाहमान है। इस दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और शिवराज की पत्नी साधना सिंह भी मौजूद थीं।
रामानुजाचार्य की प्रतिमा के पास खड़े सीएम शिवराज सिंह चौहान।
धर्म जोड़ता है, राजनीति तोड़ती है
सीएम शिवराज ने कहा यहां सब एक साथ हैं। यह अद्भुत है। यह दृश्य देखकर मन भावों से भरा है। स्वामी भगवान रामानुजाचार्य का स्टैच्यू जिसे हम भव्य प्रतिमा कह रहे हैं। मैं सोच रहा था कि इनसे क्या सीखूं। धर्म जोड़ता है, राजनीति तोड़ती है। यहां जाति, पंत, छोटा, बड़ा, ऐसा कुछ नहीं है। सब लक्ष्मीनारायण की संतान हैं। हम सब उसी के पुत्र हैं, लेकिन राजनीतिक विचार कर लेते हैं तो यह पता नहीं कितने टुकड़ों में तोड़ देती है। सामान्य, सामान्य में भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य में। पिछड़ा, अति पिछड़ा, यह दलित, यह महादलित जैसे टुकड़ों में टूट जाते हैं, लेकिन यहां आकर यही भाव मन में प्रबल होता कि सारे भेद खत्म हो जाने चाहिए। सभी भेदभाव समाप्त हो जाने चाहिए। यह भारत की सनातन परंपरा है। भगवान रामानुजाचार्य जी ने इसे क्रियान्वित किया।