उज्जैन । गांवों में, कस्बों में परम्परा से मिट्टी शिल्प के सृजन हो रहे हैं। कलाकार अपने पूर्वजों से मिले संस्कारों को मूर्तिशल्प के रूप में प्रस्तुत करते हैं। कालिदास साहित्य को टेराकोटा शैली में उतारने का यह प्रयास कलाकारों और कलारसिकों के लिए कदाचित् प्रथम अनुभव है। टेराकोटा में कुमारसम्भवम् का शिल्पांकन अभिनंदनीय है।
ये विचार वरिष्ठ मूर्तिकार श्री राधाकिशन वाडिया ने कालिदास संस्कृत अकादमी म.प्र. संस्कृति परिषद उज्जैन द्वारा कुमारसम्भव पर केन्द्रित टेराकोटा मूर्तिकला के 15 दिवसीय समरस कला शिविर के शुभारम्भ पर व्यक्त किए। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ चित्रकार एवं पूर्व विभागाध्यक्ष शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के श्री बी.एल. सिंहरोड़िया ने कहा कि जब से सभ्यता का विकास हुआ तब से हम मिट्टी के शिल्प, आभूषण, बर्तन बनाते आ रहे हैं। टेराकोटा में मूर्ति निर्माण के प्रथम प्रयास का अनुभव करेंगे। वरिष्ठ चित्रकार डॉ.श्रीकृष्ण जोशी ने कहा कि टेराकोटा प्राचीन विद्या है। प्रत्येक युग में इसका विकास होता रहा है। प्राचीनकाल में मुद्राएँ, बर्तन आदि मिट्टी से ही बनाये जाते रहे हैं। इससे मिट्टी का महत्व स्पष्ट होता है।
स्वागत भाषण अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ.सन्तोष पण्ड्या ने दिया। उन्होंने कहा कि अकादमी अपनी स्थापनाकाल से ही प्राचीन कला आयामों के संवर्धन तथा नई पीढ़ी के साक्षात्कार कराने के लिये विविध आयोजन करती है। मूर्तिविधा में टेराकोटा शैली में कुमारसम्भवम् का शिल्पांकन अभिनव संकल्पना है। कार्यक्रम का संचालन और आभार प्रदर्शन उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया ने किया।
7 मार्च तक चलेगा शिविर
15 दिवसीय शिविर 7 मार्च तक चलेगा। इसमें श्री टीकाराम प्रजापति, छतरपुर, श्री नोनेलाल प्रजापति, छतरपुर, श्री मोहन प्रजापति, छतरपुर, श्री धनीराम प्रजापति, छतरपुर एवं श्री नारायण कुम्हार, राजसमन्द (राजस्थान) एवं इनके सहयोगी कलाकारों द्वारा 15 दिनों तक कुमारसम्भवम् पर केन्द्रित मूर्तियों एवं अन्य मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा और शिविरार्थियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।