सनातन काल से ही भारतवर्ष की साख सहकारिता रही है : लालसिंह राणावत

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उज्जैन। सनातन काल से जो आपसी मेल मिलाप एवं सौहार्द पूर्ण वातावरण रहा है, वही सहकारिता है। वर्तमान समय में भारतवर्ष में इसी वातावरण की आवश्यकता है, तभी सहकारिता से समृद्धि आएगी।
भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की सहकारी शिक्षा क्षेत्रीय परियोजना उज्जैन द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव की शृंखला में सहकारिता से समृद्धी विषय पर नेतृत्व विकास कार्यशाला का आयोजन नगरीय क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न प्रकार की सहकारी संस्था के पदाधिकारियों के लिए किया।
इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि लाल सिंह राणावत पूर्व विधायक एवं अध्यक्ष जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित उज्जैन, मुख्य वक्ता राजीव शर्मा निदेशक भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ नई दिल्ली, विशिष्ट अतिथि पीके बदनोरे सेवानिवृत्त वरिष्ठ अंकेक्षण अधिकारी जिला सहकारिता उज्जैन, विशेष अतिथि रुपेश नहार महाप्रबंधक, औद्योगिक विकास सहकारी बैंक मर्यादित उज्जैन, विशेष अतिथि एवं विषय विशेषज्ञ सुभाष श्रीवास्तव उप संचालक उद्यान विभाग उज्जैन थे। अध्यक्षता योगेंद्र सिंह सिसोदिया पूर्व अध्यक्ष जिला सहकारी संघ उज्जैन रहे ने की।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा महात्मा गांधी के चित्र पर सूत की माला एवं पुष्प अर्पित कर शुभारंभ किया। तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत परियोजना कर्मचारियों द्वारा पुष्प गुच्छ भेंट कर किया गया। प्रभारी परियोजना अधिकारी चंद्रशेखर बैरागी ने स्वागत उद्बोधन में अतिथि प्रतिभागी परिचय के साथ कार्यक्रम के विषय सहकारिता से समृद्धि विषय पर प्रकाश डाला। संचालन प्रेम सिंह झाला सहकारी शिक्षा प्रेरक ने किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राजीव शर्मा द्वारा भारत वर्ष मे सहकारिता का महत्व तथा सहकारिता क्षेत्र में प्राप्त विशेष उपलब्धियों के विवरण के साथ सहकारिता के सफल मॉडल की व्याख्या की एवं सहकारी क्षेत्र में चल रहे शिक्षण एवं प्रशिक्षण के कार्यों की जानकारी प्रतिभागियों को दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लाल सिंह राणावत ने कहा भारतवर्ष में सनातन काल से ही सहकारिता रची बसी है, क्योंकि हम सब भारतवासी हमेशा आपस में मिलजुल कर हर कार्य को सफल करते आए हैं। वर्तमान समय में सहकारिता हर चुनौती का सामना करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान कर सकती है। आज हमें संकल्प लेना चाहिए कि साख संस्था, नागरिक सहकारी बैंक, किसान उत्पादक संगठन, बीज समितियां, मस्त्य समितियां इत्यादि बनाकर हम सफलतापूर्वक संचालित करें तो हम भी अमूल अच्छा उदाहरण सहकारिता के क्षेत्र मे प्रस्तुत कर सकते हैं।
पीके बदनोरे ने साख समिति के गठन एवं बाय-लाज की विस्तृत जानकारी के साथ नियम प्रावधान एवं संचालन के तरीकों की विस्तृत व्याख्या की। इसके संचालन में आने वाली व्यवहारिक कठिनाइयों की जानकारी दी एवं उनके निराकरण के उपाय भी बताए। रुपेश नाहर ने साख शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि साख के दो अर्थ होते हैं एक तो अपने स्वयं की साख तथा दूसरा साख मतलब ऋण होता है, संस्था अपने सदस्यों से अमानत, अल्प बचत खाते, डेली कलेक्शन बचत आदि के खाते खोलकर संचालन करती है। इन्हीं राशि को छोटे-छोटे दुकानदारों एवं व्यवसाय को ऋण के रूप में उपलब्ध कराती है, जिससे उनकी आजिविका चल सके। सहकारी साख संस्थाएं अपने सदस्य के शेयर, अमानत, फिक्स्ड डिपॉजिट आदि की राशि के द्वारा ही अपना संचालन करती है।
सुभाष श्रीवास्तव ने उद्यानिकी विभाग से जुड़ी योजनाओं की जानकारी के साथ ही किसान उत्पादक संगठन कृषि के क्षेत्र में कौन-कौन विकास कार्य कर सकते हैं एवं अपनी आय को किस प्रकार दुगनी कर सकते हैं की व्याख्या की। साथ ही कहा कि जिले में प्याज, लहसुन, संतरा, आलू बहुतायत में एवं उच्च क्वालिटी के होते हैं लेकिन यह फसल उज्जैन के नाम से विक्रय न होकर अलग-अलग स्थानों के नाम से विक्रय होती है, जैसे लहसुन-जावरा, संतरा-नागपुर के नाम से होता है। संतरा उज्जैन का लेकिन बिकता है नागपुर के नाम से आज आप लोगों से आह्वान करता हूं एपीओ बनाकर आप अपनी अच्छी क्वालिटी की फसल का ब्रांड नेम देकर उज्जैन के नाम से ही उनका विक्रय करें।
योगेंद्र सिंह सिसोदिया ने कहा कि सहकारिता में अपार संभावना है लेकिन हमें दृढ़ विश्वास एवं ईमानदारी के साथ सहकारी सिद्धांतों, मूल्य एवं नियम का पालन करते संस्थाओं में अपना योगदान देना चाहिए, तभी हम इस तीसरे सेक्टर (सहकारिता) को और अधिक मजबूत कर पाएंगे एवं सहकारिता ही एकमात्र ऐसा साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति से सीधे संबंधित है एवं सभी का योगदान उसमें होता है।

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