उज्जैन । उज्जयिनी देवताओं की नगरी होने के साथ अब साइंस सिटी होने की पहचान निर्मित कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने वाला मध्य प्रदेश प्रथम राज्य बना है। देश की अन्तरआत्मा को पहचानते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आमूलचूल परिवर्तन किये हैं। शिक्षा में हुए परिवर्तन को लागू कर नवाचार में सफलता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। नवाचार के साथ शिक्षा का क्षेत्र सफलता की ओर अग्रसर हो रहा है। नई शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन के लिये हमारे देश के विद्वानों को आगे आकर उस पर चिन्तन-मनन करने की और अधिक आवश्यकता है।
इस आशय के विचार उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने शनिवार 23 जुलाई को उज्जैन के विक्रम कीर्ति मन्दिर में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नईदिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में ‘शिक्षा में स्वायत्तता और राष्ट्रीय शिक्षा नीति-चुनौतियां और समाधान’ विषय पर व्यक्त किये। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.यादव ने कहा कि कालान्तर से देश में बहुत कुछ बदलाव नहीं हुआ। लोकतंत्र में सारे पहलुओं पर समाज में सही न्याय हो इस पर प्रयास किया जा रहा है। विक्रमादित्य के न्याय जैसी प्रणाली हो। हमारा देश विभिन्न विविधता वाला देश है। सबका सम्मान कर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपना कर प्रदेश में लागू किया गया है। इसके पूर्व संगोष्ठी शुभारम्भ के पूर्व विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अखिलेश कुमार पाण्डेय ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि स्वच्छंदता और स्वतंत्रता में अन्तर होना चाहिये। शिक्षा के माध्यम से हमारी नई पीढ़ी संस्कार ग्रहण करती है। हमें साक्ष्यों के साथ भारतीय शोध परम्परा को विश्व पटल पर रखने की आवश्यकता है। दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन रविवार 24 जुलाई को होगा। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता श्री अशोक कड़ेल ने कहा कि स्वायत्तता शिक्षा के साथ समाज और हमारे जीवन में भी आवश्यक है। स्वायत्तता परिवार से शुरू होनी चाहिये। स्वस्थ और चैतन्य समाज का निर्माण स्वायत्तता के बगैर नहीं हो सकता।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि इग्नु विश्वविद्यालय नईदिल्ली के कुलपति प्रो.नागेश्वर राव ने कहा कि नीति को लागू करने में शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास देश के प्रत्येक भाग में कार्य कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को न्यास ने समाज से जोड़ा है। नईदिल्ली के श्री दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने भी अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम कर रहा है। विकृतियों से दूर रहना चाहिये। समाज में व्यापक परिवर्तन करना है तो पहले शिक्षा को अपना कर उसे स्वायत्त बनाना आवश्यक है। समस्याओं को नहीं समाधान की बात की जाना चाहिये। देश की आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिये हम शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा व्यापार के रूप में स्थापित हो चुकी है। शिक्षा कुछ संख्या में नौकरी तो दे रही है, किंतु संस्कार और चरित्र नहीं। छात्र शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपने आपको कौशल विहीन, आत्म-विश्वास से शून्य और असहाय अनुभव करता है। इन सब बातों को शिक्षा के साथ समाज के अन्य वर्गों ने भी अनुभव किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा, छात्रों के चरित्र, गुणों के विकास के साथ श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण का विशेष ध्यान रखा गया है। शिक्षा की स्वायत्तता शासन, विचारधारा, शिक्षा संचालक, अभिभावक आदि के अनावश्यक हस्तक्षेप से मुक्त होने की अवधारणा को रेखांकित करती है। इन सभी पहलुओं पर मंथन करने के लिए उक्त दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी हो रही है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में स्वागत भाषण विक्रम विश्वविद्यालय के कुल सचिव डॉ.प्रशांत पौराणिक ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर सांची बौद्ध विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ.नीरजा गुप्ता, चित्रकूट विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.भगत मिश्र, विवेकानंद विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ.अनिल तिवारी, प्रदेश एवं शुल्क नियामक आयोग के अध्यक्ष डॉ.रवीन्द्र कान्हारे, डॉ.ऋषभ प्रसाद जैन, श्री संजय स्वामी, श्री जगराम, कार्य परिषद सदस्य श्री संजय नाहर, श्री विनोद यादव, श्री नरेश गुप्ता सहित देश के विद्वतजन आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रो.शैलेंद्र कुमार पाराशर ने किया।