महाकवि कालिदास भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ उद्गाता हैं -प्रो. के.एन.जोशी

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उज्जैन । ‘‘भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ उद्गाता महाकवि कालिदास हैं। न केवल पृथ्वी पर अपितु तीनों लोकों पर। संस्कृत के प्रत्येक विद्यार्थी को अपना सम्पूर्ण जीवन कालिदास के साहित्य को समर्पित कर देना चाहिए’।

यह उद्गार वरेण्य विद्वान् प्रो. केदानारायण जोशी ने कालिदास समारोह की राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के ‘भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कालिदास’ विषयक सत्र में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कही। व्याख्यान सत्र में अपने शोध पत्र का वाचन करते हुए उज्जैन के डॉ. अखिलेश कुमार द्विवेदी ने कहा कि राजा दिलीप की गौसेवा किसी भी राजा के कत्र्तव्य परायणता का सर्वोत्तम उदाहरण है। महाकवि कालिदास अपने प्रत्येक पद में कहते है कि मानव का आचरण विनम्र होगा, तभी समाज उन्नति करेगा। प्रो. वंदना त्रिपाठी, उज्जैन ने बताया कि कालिदास चार आश्रमों की व्यवस्था पर पूर्ण विश्वास करते है और अपने साहित्य में उसकी स्थापना करते हैं। चार वेद और चार आश्रम एक-दूसरे का विरोध न करते हुए उससे समाज को पोषित करते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि पूज्य की पूजा न करना किसी के लिए भी श्रम्य नहीं है, फिर चाहे वह राजा ही क्यों न हो। मैनपुरी से पधारीं डाॅ. कल्पना द्विवेदी ने अपने शोध पत्र में कहा कि कालिदास अपनी कवितारूपी दीपशिखा से भारतीय संस्कृति को आलौकित करते है। भारतीय संस्कृति का ऐसा कोई तत्त्व नहीं बचा है जहाँ तक कालिदास की दीपशिखा न पहुँची हो। कालिदास ने अपने साहित्य में पुंसवन संस्कार से लेकर 16 संस्कार की बात कही है। महाकवि ने भारतीय संस्कृति में व्याप्त पाँचों यज्ञ के

संबंध में भी बात कही है। वे यह मानते हैं कि भारतीय संस्कृति में कोई भी किसी के अधिकारों का हनन नहीं करता है।

डॉ. ओमप्रकाश पारिक, जयपुर ने ‘भारतीय सनातन तत्त्व के प्रसारक, प्रवाहक कालिदास’ विषयक शोध पत्र में कहा कि कालिदास भारतीय संस्कृति के प्रवाहक हैं। डॉ. पारिक ने ऋषि शब्द को व्याख्यायित करते हुए कहा कि देखना, जानना फिर उसे गति देना ऋषि होना होता है। कालिदास, व्यास और वाल्मीकि के समकक्ष है। कोई वस्तु तप के बिना सिद्ध नहीं हो सकती। इंदौर के प्रो. विनायक पाण्डे ने कहा कि कालिदास धर्ममूला संस्कृति के उपासक हैं। मनुष्य को आजीवन अपनी चित्त की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए। कालिदास पुरुषार्थ चतुष्टयी के साधक हैं। वे गृहस्थ आश्रम को समस्त आश्रमों में श्रेष्ठ मानते हैं। कालिदास सविधि विवाह को अपने काव्य में स्थापना करते हैं।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र का संचालन डॉ. महेन्द्र पण्ड्या ने किया। इस अवसर पर प्रो. अरुण वर्मा, प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, प्रो. रहसबिहारी द्विवेदी, प्रो. बसंतकुमार भट्ट, प्रो. सदानन्द त्रिपाठी एवं बड़ी संख्या में शोध छात्र उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत एवं आभार कालिदास संस्कृत अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ. सन्तोष पण्ड्या ने व्यक्त किया।

समारोह में आज

समारोह के अन्तर्गत प्रातः 10 बजे संस्कृत कविसमवाय आयोजित होगा। इसके अध्यक्ष प्रो. मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी, इंदौर होंगे व विशिष्ट अतिथि डॉ. प्रफुल्लकुमार मिश्र, पुरी एवं डॉ. भगवतशरण शुक्ल, वाराणसी होंगे। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का तृतीय सत्र दोपहर 2.30 बजे से आयोजित होगा। इसमें विक्रम-कालिदास पुरस्कार से चयनित शोध-पत्रों का वाचन होगा। इसी संध्या 5 बजे महाकवि कालिदास व्याख्यानमाला में चित्रकला मर्मज्ञ कालिदास के नाटकों में व्यक्ति मित्र विषय पर व्याख्यान होगा, जिसके वक्ता डॉ. पंकज भाम्बुरकर, पुणे होंगे तथा अध्यक्षता डॉ. श्री श्रीनिवासन् अय्यर, उदयपुर करेंगे।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत डॉ. हरिहरेश्वर पोद्दार, उज्जैन द्वारा शास्त्रीय नृत्य कथक एवं श्री विशाल कलम्बकर, उज्जैन के निर्देशन में मालवी नाटक मालव कीर्तिगाथा की प्रस्तुति दी जाएगी।

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