आमतौर पर जब बच्चे विभिन्न परिस्थितियों की मार झेलते हुए किसी अनाथाश्रम पहुंचते हैं तो वे वहां रहकर अपनी पिछली जिंदगी भूल जाते हैं। हालांकि इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं, जो एक उम्र के साथ समझ विकसित होने के बाद अपने परिवार की कमी महसूस करते हैं।
उन्हें अपनी जैसी भाषा व धार्मिक मान्यताओं को मानने वालों की कमी खलती है। वे अपने माता-पिता के साथ मनाए जाने वाले त्योहारों व रीति-रिवाजों को याद करते हैं। ऐसे बच्चों की मासूम भावनाओं और उनकी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर पालन-पोषण करने का जिम्मा शहर की खजूरीकलां स्थित सेव अवर सोल चिल्ड्रेन विलेजेस आफ इंडिया (एसओएस बालग्राम) की भोपाल शाखा ने उठाया है। यहां बच्चों का उनकी धार्मिक मान्यताओं व संस्कारों के अनुसार पालन-पोषण किया जा रहा है।
दरअसल, एसओएस बालग्राम में कुल 16 घर बनाए गए हैं। इन्हें नंबर के साथ नाम भी दिए गए हैं। इनमें 18 से कम उम्र के 140 बच्चे रह रहे हैं। इन घरों का जिम्मा अलग-अलग 16 माताओं के पास है। प्रत्येक मां के साथ कुछ बच्चे भी रहते हैं। ये यहां रहकर पढ़ाई करते हैं, साथ ही उन्हें अपने समाज के रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की भी स्वतंत्रता रहती है। यहां बच्चे सामान्य घरों के साथ ही चाहें तो अलग से बनाए गए मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, ईसाई व मुस्लिम घरों में भी रह सकते हैं। यहां माताएं बच्चों को धार्मिक रीति-रिवाज व संस्कार देकर पालती हैं। बालग्राम के मराठी घर की मां सुनीता ओरमाड़े के साथ 10 बच्चे रहते हैं। वे उनसे मराठी में बात करती हैं और मातृभाषा भी सिखाती हैं। उनके साथ रहने वाले बच्चे गुड़ीपड़वा मनाने के साथ गणेशजी की स्थापना करते हैं। उनके लिए महाराष्ट्रीयन व्यंजन भी बनाए जाते हैं। बंगाली परिवार में अन्नपूर्णा चांद के साथ चार बच्चे रहते हैं। वे बंगाली भाषा में बात करना सीख गए हैं। मुस्लिम घर की मां रहीसा शेख के साथ छह बच्चे हैं। वे उन्हें नमाज व कलमा पढ़ना सिखाती हैं। यहां बच्चे ईद मनाते हैं और रोजा भी रखते हैं। वे बच्चों की फरमाइश पर सेवई, बिरयानी भी बनाती हैं।
ससुराल वालों ने भी खुशी-खुशी अपनाया
इन बच्चों को उनकी पृष्ठभूमि के साथ अपनाकर संस्कारित करने से उन्हें अपना जीवनसाथी तलाशने में भी मदद मिलती है। ईसाई परिवार की मां रीना छेत्री बताती हैं कि उनके घर की बेटी की शादी ईसाई परिवार में हुई है। ससुराल वाले बेहद खुश हैं कि उन्हें ऐसी बहू मिली, जो उनके समुदाय के रीति-रिवाजों को जानती है। वहीं मराठी घर की मां सुनीता ने बताया कि कुछ लड़कियों की शादी महाराष्ट्रीयन परिवार में हुई है तो कुछ ने अपनी पसंद से दूसरी जाति में भी शादी की है। नवजीवन घर की मां कृष्णा ने बताया कि मैंने अभी तक तीन बेटियों की शादी की है। इसी तरह दो लड़कियों की शादी मुस्लिम परिवार में हुई।
संस्था का मानना है कि बच्चों का अपनी जड़ों से जुड़ा रहना अत्यंत जरूरी है। हमने बच्चों को उनकी संस्कृति और रीति-रिवाजों के साथ जोड़े रखने की मिसाल पेश की है। एसओएस परिवार में मां अपनी देखरेख में पलबढ़ रहे हर बच्चे के साथ दीर्घकालिक रिश्ता बनाती हैं। हर बच्चे को मां से बिना किसी शर्त के प्यार मिलता है और यहां बच्चों का पालन-पोषण पारिवारिक वातावरण में होता है।
– सुमंता कर, सेक्रेटरी जनरल, एसओएस बालग्राम
एक नजर में
- कुल बच्चे – 140
- लड़के – 50
- लड़कियां – 90
- हर घर में बच्चों की संख्या – 6 से 10