चेहरे की सुंदरता से लेकर आपको तनाव मुक्त करने की ताकत रखने वाले मोती अब तक समुद्र में ही मिलते थे, लेकिन अब इसे हम अपने तालाब या पानी के कुंड में भी तैयार कर सकते हैं।
इसका पूरा प्रशिक्षण जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र छिंदवाड़ा में किसानों को दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय मोती तैयार करने से लेकर प्रशिक्षण तक की जानकारी अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा। दरअसल मोती की खेती के प्रति बढ़ते रुझान को देखते हैं निर्णय लिया गया है। प्रशिक्षण अब प्रदेश के किसानों के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी दिया जा रहा है।
यह होती प्रक्रिया: इसके बाद इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलान बैगों में रखकर (दो सौ सीप प्रति बैग) बांस के सहारे मोती की खेती का प्रशिक्षण देते हुए कृषि विज्ञानी। नईदुनिया लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। अंदर से निकलने वाला पदार्थ बीड के चारों ओर जमने लगता है, जो अंत में मोती का रूप ले लेता है। इस प्रक्रिया में लगभग 12-15 माह लगते हैं।
किसान ले रहे प्रशिक्षण: इन दिनों कृषि विज्ञान केंद्र छिंदवाड़ा में यह खेती प्रयोग के तौर पर शुरू की गई है, जिसके बेहतर परिणाम सामने आए हैं। यहां पर जिले के किसानों को इसका प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसके साथ ही अन्य राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े कृषि विज्ञान केंद्र के किसान और विज्ञानी भी मोती की खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए यहां आते है। विज्ञानी चंचल भार्गव बताती हैं कि मोती की खेती करने के लिए लगभग सात से साढ़े सात लाख का खर्च आता है जिसमें तालाब की खुदाई, सीप की खरीदी, बैग की खरीदी और रासायनिक पदार्थ पर होने वाला खर्च शामिल है। अभी इसकी खेती के लिए न तो कोई सरकारी योजना नहीं है और न ही किसी तरह का अनुदान मिलता है।