पोहा क्लस्टर के लिए तो जमीन नहीं दे पाए, अब बटिक शिल्पियों को जगह उपलब्ध कराने के दावे

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एक जिला एक उत्पाद योजना व पोहा क्लस्टर के नाम पर पोहा-परमल उद्यमियों को लंबे समय से गुमराह करने के बाद अब जिला प्रशासन भैरवगढ़ के बटिक शिल्पियों से बड़े-बड़े दावे कर रहा है। इन्हें भैरवगढ़ के आसपास जमीन मुहैया करवाने के साथ ही अन्य सुविधाएं देने की बातें कहीं जा रही हैं। इन तमाम परिस्थितियों से यह प्रतीत होता है कि प्रदेश में उज्जैन जिले को पिछड़ता देख प्रशासन अब कुछ तो भी निर्णय लेकर योजना को किसी पर भी थोपना चाह रहा है। एक जिला एक उत्पाद शासन की योजना है।

शुरुआत में उज्जैन प्रशासन ने पोहा-परमल उद्योग को एक जिला एक उत्पाद के लिए चयन किया था लेकिन बाद में मुकर गया। इसलिए कि लंबे समय से प्रशासन पोहा-परमल उद्यमियों को क्लस्टर के लिए जमीन ही मुहैया नहीं करवाया पाया है। ऐसे ये उद्यमी स्वयं को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।

अब प्रशासन एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत भैरवगढ़ के बटिक प्रिंट उत्पाद के चयन की बात कह रहा है। पिछले सप्ताह बृहस्पति भवन में अधिकारियों ने भैरवगढ़ के बटिक शिल्पियों के साथ बैठक कर उनके सामने बड़े-बड़े दावे किए। इधर बटिक उद्यमी आसिफ बड़वाला ने कहा कि प्रशासन यदि उन्हें हर संभव मदद करेगा तो वे भी कारोबार को आगे बढ़ाने में पीछे नहीं हटेंगे।

यह दावे-वादे व बातें भी हुई

  • बटिक उत्पाद की बिक्री और मांग बढ़ाने के लिए हैंडीक्रॉफ्ट क्लस्टर बनाना होगा।
  • भैरवगढ़ क्षेत्र के आसपास जमीन शिल्पियों को उपलब्ध करवाई जाएगी।
  • बटिक शिल्पियों का डाटा अपडेट करेंगे।
  • उत्पाद की अधिक बिक्री देश के किस हिस्से में होती है इसकी योजना बनाएंगे।
  • बटिक शिल्पियों का बेसलाइन डाटा तैयार किया जाएगा। इनका स्वयं का संगठन तैयार किया जाएगा।
  • प्रिंट उत्पादन से लेकर निर्यात पर कार्य योजना बनाई जाएगी।

(वादे जो कलेक्टर की मौजूदगी में किए गए)

यह चुनौतियां, जिनका समाधान फिलहाल प्रशासन के पास नहीं

कच्चा मटेरियल- बटिक कारोबार के लिए कारीगर कच्चे माल यानी कपड़ा, रंग व मोम आदि के लिए दूसरों प्रांतों पर निर्भर रहते हैं।

चुनौती 1 – जब तक शिल्पियाें को कच्चे माल की उपलब्धता व आपूर्ति की गारंटी नहीं तब तक उद्योग की उन्नति कैसे संभव है। क्योंकि कच्चे माल के अभाव में काम रुकेगा व अटकेगा। इसके एवज में होने वाले नुकसान की भरपाई कौन करेगा?

खरीदारों का अभाव- बटिक का बड़े पैमाने पर उत्पाद कर भी लिया तो उस अनुपात में खरीदार यानि बाजार भी चाहिए।

चुनौती 2– क्या प्रशासन बाजार व खरीदार मुहैया करवा पाएगा? जितना उत्पाद होगा उस तुलना में उठाव होगा इसकी गारंटी प्रशासन लेगा? क्योंकि अभी तो कारोबारियों को बाजार व खरीदारों के लिए अन्य प्रांताें में जाना पड़ता है। तब जाकर वे माल को बेच पाते है।
कार्य स्थल की उपयोगिता- वर्तमान में कारीगर भैरवगढ़ में ही बटिक काम कर रहे हैं, यहीं उन्हें आसपास के कारीगर भी मिल जाते हैं।

चुनौती 3– प्रशासन अन्य जगह जो जमीन मुहैया करवाने जा रहा है, सवाल यह कि वहां मूलभूत सुविधाएं सड़क-बिजली-पानी व निकासी की व्यवस्थाएं करके दी जाएगी या नहीं? क्योंकि पोहा परमल उद्यमियों को तो प्रशासन ने इन सुविधाओं से इनकार कर दिया था।

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