स्कूलों में 15 से 18 वर्ष की आयु वाले विद्यार्थियों को एक तरफ टीकाकरण के लिए प्रेरित करते हुए टीकाकरण किया जा रहा है। दूसरी तरफ कई विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनके पालक उन्हें टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं है। कई शासकीय स्कूलों में शिक्षकों के साथ प्राचार्य भी ऐसे पालकों को लेकर परेशान हैं। इधर वैक्सीन नहीं लगवाने वाले विद्यार्थियों के संबंध में अधिकारियों की स्थिति भी पसोपेश जैसी है।
ऐसा ही एक मामला सामने आया है। जिसमें वैक्सीन नहीं लगवाने पर विद्यार्थी को कक्षा से बाहर कर दिया गया। गायत्री नगर निवासी ज्ञानेश्वर सूर्यवंशी ने बताया उनके दोनों बच्चे शासकीय उमावि मॉडल स्कूल ढांचा भवन में अध्ययनरत हैं। पुत्र वैभव 12वीं में साइंस विषय का विद्यार्थी है और पुत्री सांची 10वीं की छात्रा है। ज्ञानेश्वर का कहना है कि उनके दोनों बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं, इसलिए वह अपने बच्चों को टीका नहीं लगवाना चाहते।
इस संबंध में उन्होंने मॉडल स्कूल के प्राचार्य और जिला शिक्षा अधिकारी को भी पत्र लिखा है। ज्ञानेश्वर का आरोप है कि 19 जनवरी को वैभव जब स्कूल गया तो क्लास टीचर और प्राचार्य ने उससे कहा कि अगर वैक्सीन नहीं लगवाई तो तुम्हें चल रही प्री-बोर्ड परीक्षा के दूसरे पेपर में नहीं बैठने दिया जाएगा।
इस तरह दबाव बनाकर उसे डराया गया, जिससे वह भयभीत हो गया। ज्ञानेश्वर का कहना है कि अपने बच्चों को वैक्सीन लगवाने या नहीं लगवाने का निर्णय लेना उनका संवैधानिक अधिकार है लेकिन स्कूल प्रबंधन द्वारा असंवैधानिक तरीके से उनके बच्चों को प्रताड़ित किया जा रहा है।
8 फरवरी को वैभव स्कूल गया तो क्लास टीचर ने पूछा कि वैक्सीन लगवाई या नहीं। वैभव ने मना किया तो उसे क्लास से बाहर कर दिया। एक घंटे तक वैभव क्लास के बाहर बैठा रहा और घर आ गया। दोनों बच्चों को स्कूल के वाट्स एप ग्रुप से भी बाहर कर दिया। ज्ञानेश्वर का दावा है कि भारत सरकार द्वारा वैक्सीनेशन को स्वैच्छिक रखा गया है और इसे नहीं लगवाने वाले के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
इधर मॉडल स्कूल के प्राचार्य पद्मसिंह चौहान ने बताया कि विभागीय आदेश का पालन करते हुए वैक्सीन नहीं लगवाने पर हमने छात्र को कक्षा में सम्मिलित नहीं किया। छात्र अपनी मर्जी से क्लास के बाहर बैठा रहा। फिलहाल कक्षाएं नहीं लग रही हैं। सोमवार को दोनों छात्र-छात्रा के प्रवेश पत्र भी जारी किए गए हैं। उन्हें किसी भी तरह परीक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा। अन्य स्कूलों में भी ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां पालक या विद्यार्थी वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं हैं। इन मामलों में विद्यार्थियों को लेकर अधिकारी भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं।
वैक्सीन लगवाना या नहीं संवैधानिक अधिकार- पालक टीका लगवाना सभी की नैतिक जिम्मेदारी – अधिकारी
सरकार ने ही वैक्सीनेशन को स्वैच्छिक किया है। अपने बच्चों को वैक्सीन लगवाने या नहीं लगवाने का निर्णय लेना मेरा मौलिक अधिकार है। इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन द्वारा मेरे बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। मेरे दोनों बच्चों पूरी तरह स्वस्थ हैं।ज्ञानेश्वर सूर्यवंशी, पालक
जो पालक या विद्यार्थी वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं है, उन्हें समझाइश देकर वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अगर इसके बावजूद वह नहीं मानते हैं तो आगे इस संबंध में विचार कर निर्णय लिया जाएगा।
आनंद शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी
वैक्सीन पूरी तरह सेफ है। बगैर किसी हिचक के वैक्सीन लगवाना चाहिए। यह अनिवार्य नहीं है लेकिन टीका लगवाना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। हमें टीकाकरण की उपयोगिता को समझना चाहिए।– डॉ. रौनक एलची
जिला कोविड नोडल अधिकारी एवं जिला आरआर टीम प्रभारी
ऐसे मामले सामने आने पर पालकों को टीकाकरण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। ताकि वह खुद की आैर दूसरों की सुरक्षा के लिए वैक्सीनेशन करवाए। इस संबंध में सरकार से जो निर्देश प्राप्त होंगे, पालन किया जाएगा।
संतोष टैगोर, एडीएम