मातृभाषा के संवर्धन और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास हर कोई अपने-अपने स्तर पर कर रहा है। मातृभाषा के साथ सहित्य का भी समावेश कर शहर की 100 वर्ष से अधिक पुरानी संस्था महाराष्ट्र साहित्य सभा द्वारा भी इसी दिशा में कार्य किया जा रहा है।
संस्था के शारदोत्सव के तहत हाल ही में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें रचनाकारों ने मराठी भाषा की कविताओं से श्रोताओं को आनंदित किया।एमजी रोड स्थित संस्था के सभागृह में हुए इस सम्मेलन की अध्यक्षता मराठी कविताओं के रचयिता पुणे के कवि दीपक करंदीकर ने की। सम्मेलन के विशेष अतिथि मोहन बांधे थे।
आयोजन में कई कवियों ने विविध विषयों पर रचना पाठ किया। श्रीकांत तारे की रचना रिश्ते और अपनेपन पर आधारित थी। उन्होंने कविता के माध्यम से कहा कि आजकल बारिश स्नेह बरसाती नहीं और सपनों के गांव में ले जाती नहीं। इंदौर के कवि मदन बोबडे ने प्रकृति को रचना में पिरोते हुए जो कविता सुनाई उसके भाव थे कि ‘रातरानी अपनी सुगंध चांदनी रात के साथ फैला रही है’। दीपक करंदीकर ने ‘शाम ढल गई फिर भी यात्रा खत्म नही हुई और मैंने भी इसके लिए प्रयास नहीं किया’ भाव लिए कविता सुनाते हुए कर्तव्यों के निर्वाहन की ओर संकेत दिया। कार्यक्रम में मुंबई के प्रज्ञा लालिगकर, ग्वालियर के वासवदुत्ता अग्निहोत्री, डा. विश्वनाथ शिरढोंणकर, गजानन तपस्वी, सुधीर बापट, सुषमा अवधूत, सुरेखा सिसोदिया, प्रा. ज्ञानेश्वर तीखे, बाऊ तीखे और योगेश तीखे ने भी मराठी भाषा में श्रृंगार और वीर रस की एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाई।
पहले हुआ अथितियों का स्वागत – अतिथि स्वागत संस्था की कार्याध्यक्ष अर्चना चितले, अश्विन खरे, अशोक आमनापुरकर, प्रफुल्ल कस्तूरे, अरविंद जवलेकर, रंजना ठाकुर, दीपाली सुदामे, हेमंत मुंगी व प्रतिमा टोकेकर ने किया। अतिथि परिचय अश्विन खरे, प्रिया तारे और प्रफुल्ल कस्तूरे ने दिया। इस अवसर पर डा. स्वाति बोबड़े, शरयु वाघमारे, संजय तराणेकर सहित कई गणमान्य नागरिक मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डा. मनीष खरगोणकर, मदन बोबडे और श्रीकांत तारे ने किया।आभार प्रफुल्ल कस्तूरे ने माना।