बुंदेलखंड की होली शुरू से ही अनूठी रही है। परमा यानी धुलेंडी के दिन जब पूरा देश होली के रंगों में सराबोर रहता है, तब बुंदेलखंड के सागर जिले के गांवों में होलिका दहन की भस्म से होली खेली जाती है। बुजुर्गों से लेकर बच्चे होलिका दहन की राख (भस्म) और कीचड़ लगाकर एक-दूसरे को होली पर्व की शुभकामनाएं देते हैं।
बुंदेलखंड में रात के समय होलिका दहन के बाद परमा यानी धुलेंडी के दिन सुबह से गांवों में लोग एक तिगड्डा पर जमा होते हैं। जहां से गाजे-बाजे (सोवत) के साथ होलिका दहन की भस्म लेने जाते हैं। पूरे गांव के लोग एक साथ फागे गाते हुए होलिका दहन स्थल पर पहुंचते हैं। जहां होलिका की भस्म उठाते हैं। भगवान को भस्म चढ़ाने के बाद एक-दूसरे को राख लगाकर होली पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। यह परंपरा वर्षों पुरानी है, जो आज भी बुंदेलखंड के गावों में खेली जाती है।
भस्म से होली खेलने की यह है मान्यता
मान्यता है कि जब भक्त प्रहलाद को उनकी बुआ होलिका ने गोदी में बैठाकर भस्म करने का प्रयास किया तो प्रहलाद तो बच गए। लेकिन होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। होलिका के शरीर की भस्म को हिरण्यकश्यप सहित उसके असुर सैनिकों ने माथे से लगाकर भगवान विष्णु से प्रतिशोध लेने की कसम खाई थी। वहीं विष्णु उपासकों और देवताओं ने भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में उत्सव मनाया और भस्म शरीर पर लगाई थी। धीरे-धीरे परंपरा ने जन्म ले लिया और होलिका दहन की भस्म से लोग होली खेलने लगे, जो आज भी चली आ रही है।
होलिका दहन की एक-दूसरे पर भस्म उड़ाते हुए।
ग्राम खामखेड़ा में होलिका की राख से खेली होली
सागर जिले के ग्राम खामखेड़ा में परंपरानुसार धुलेंडी के दिन लोग गाजे-बाजे के साथ होलिका की भस्म लेने के लिए पहुंचे। जहां भगवान को भस्म चढ़ाने के बाद एक-दूसरे पर जमकर होलिका की राख उड़ाई। रंगों के पर्व होली की बधाइयां दी।