गांवों में जमीन को लेकर होने वाले विवादों को खत्म करने के लिए लाई गई पीएम स्वामित्व योजना के तहत प्रदेशभर में बांटे गए प्रॉपर्टी कार्ड बैंकों का सिरदर्द बढ़ा रहे हैं। इन कार्ड को लेकर दावे किए जा रहे हैं कि इससे प्रॉपर्टी का टाइटल क्लियर होगा। कार्ड जरूरत पड़ने पर प्रॉपर्टी पर खेती के साथ घर बनाने के लिए भी बैंकों से कर्ज लेने में मदद करेगा, लेकिन मप्र सरकार ने खसरों की डिजिटल एंट्री करके निकाले गए सर्टिफिकेट बतौर जो प्रॉपर्टी कार्ड बांटे हैं, उनमें प्रॉपर्टी की चौहद्दी (यानी उसके चारों तरफ क्या है) तक नहीं बताई गई है।
ग्रामीण इस कार्ड को लेकर बैंकों के पास लोन लेने गए तो बैंकों ने कर्ज देने से इनकार कर दिया। तर्क दिया, कार्ड से यह तय नहीं हो रहा कि प्रॉपर्टी का टाइटल किसके पास है। प्रॉपर्टी कहां स्थित है। आसपास की जमीनों का स्वामित्व किसके पास है। नियमानुसार बैंक इस तरह की प्रॉपर्टी पर लोन दे ही नहीं सकते, लेकिन ग्रामीण अधिकारियों और स्थानीय नेताओं के जरिये बैंकों पर लोन देने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस तरह के मामले सबसे पहले हरदा जिले में आए। इसके बाद विदिशा, सीहोर और भोपाल से भी बड़ी संख्या में आ रहे हैं।
ग्रामीणों का तर्क है कि जब सरकार ने स्वामित्व का कार्ड देकर यह बता दिया है कि जमीन का टाइटल किसके नाम है तो बैंक को इसे मानने में क्या परेशानी है? बैंक शाखाओं ने इस तरह के मामले जिलों के लीड डिस्ट्रिक्ट मैनेजर (एलडीएम) के माध्यम से राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) को भेजे हैं। बैंक मप्र सरकार को लिख चुके हैं कि इस कार्ड के आधार पर प्रॉपर्टी पर लोन नहीं दिया जा सकता।