राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अनुसार डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के बेहतर इलाज और उन्हें थैरेपी देने के मामले में भोपाल देश में छठवें स्थान पर है। बीते 6 साल में 15 हजार लोगों ने शुरुआती लक्षण देखकर जेपी हॉस्पिटल के स्टेट अर्ली इंटरवेंशन रिसोर्स सेंटर (समर्पण केंद्र) में रजिस्ट्रेशन कराया। इनमें 132 बच्चों में जेनेटिकली डाउन सिंड्रोम की समस्या है। बाकी बच्चों में हियरिंग, विजन, कैटरेक्स, हार्ट डिसीज समेत दूसरी बीमारियां पाई गई। अब इनको थैरेपी दी जा रही है।
इस सेंटर को राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था और यह देश के टॉप 6 शहरों में शामिल है। भोपाल से आगे लखनऊ, नागपुर, जयपुर, पुणे और इंदौर ही है। पर्यटन निगम इस सेंटर को नए सिरे से रिनोवेट कर रहा है। अब इसे और अधिक चाइल्ड फ्रेंडली बनाया जा रहा है।
समर्पण केंद्र के मैनेजर उज्ज्वल कुमार बताते हैं कि 1-2 महीने में सेंटर को और अधिक सुविधाजनक बना दिया जाएगा। डाउन सिंड्रोम फेडरेशन ऑफ इंडिया की एडमिनिस्ट्रेशन हेड बृंदा अय्यर ने बताया कि देश में 800 में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम का शिकार है।
यह है सिंड्राेम की स्थिति
- 800 में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम का शिकार है देश में
- 1000 बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं मप्र में
- 125 बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं सिर्फ इंदौर में, जबकि भोपाल में 132 बच्चे
थैरेपी से डेवलप हुई अन्य स्किल
भोपाल के 132 बच्चों में थैरेपी की मदद से अन्य स्किल डेवलप हुईं। 50 परसेंट बच्चे पेंटिंग, जबकि बाकी मिक्स एक्टिविटी करने लगे हैं। जेपी के सिविल सर्जन डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने बताया कि यह बीमारी नहीं, बल्कि जन्मजात गुण है, इसलिए थैरेपी के जरिए ही बच्चों के टैलेंट को उभारा जाता है।
डाउन सिंड्रोम में ऐसे विकार से जूझता है बच्चा
डाउन सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चा मानसिक और शारीरिक विकारों से जूूझता है। डाउन सिंड्रोम में बच्चा अपने 21वें क्राेमोसाेम की एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होता है। इसलिए इसे ट्राइसॉमी-2 भी कहा जाता है। यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर (आनुवांशिक विकार) भी है। यह बच्चे के शारीरिक विकास में देरी का कारण बनता है।