पापमोचनी एकादशी चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाति है। यह एकादशी सभी 24 एकादशी व्रतों में अंतिम है। पापमोचनी एकादशी 18 मार्च (शनिवार) को पड़ेगी। पापमोचनी शब्द पाप और मोचनी दो शब्दों से मिलकर बना है। पाप का अर्थ है पाप या दुष्कर्म और शब्द “मोचनी” का अर्थ है हटाने वाला। भक्तों का मानना है कि पापमोचनी एकादशी का व्रत रखना बेहद शुभ होता है। इस व्रत को करने वालों को उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है। एकादशी के व्रत में मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है जो व्यक्ति व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना करता है। उसको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं तिथि, शुभ मुहूर्त और उपाय के बारे में।
पापमोचनी एकादशी तिथि 2023
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ: 17 मार्च, रात्रि 12:07 मिनट पर
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त: 18 मार्च, प्रातः 11:12 मिनट पर
उदयातिथि को आधार मानते हुए पापमोचनी एकादशी का व्रत 18 मार्च को रखा जाएगा।
पापमोचनी एकादशी तिथि 2023 शुभ मुहूर्त
पापमोचनी एकादशी का शुभ मुहूर्त: 18 मार्च, प्रातः 08: 58 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
पारण का समय: 19 मार्च, प्रातः 06: 28 मिनट से 08: 09 मिनट तक।
पापमोचनी एकादशी का महत्व
पापमोचनी एकादशी व्रत के महत्व का वर्णन ‘भविष्योत्तर पुराण’ और ‘हरिवासर पुराण’ में किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पापमोचनी व्रत व्यक्ति को सभी पापों के प्रभाव से मुक्त कर देता है। पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से हिन्दू तीर्थ स्थानों पर विद्या ग्रहण करने से गाय दान करने से भी अधिक पुण्य मिलता है। जो लोग इस शुभ व्रत का पालन करते हैं, वे सभी सांसारिक सुखों का आनंद लेते हैं और अंततः भगवान विष्णु के स्वर्गिक साम्राज्य ‘वैकुंठ’ में स्थान पाते हैं।
एकादशी पर करें इस विधि से पूजा
प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
इसके भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और केले के पौधे में जल अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
इसके बाद पूजा स्थल में भगवान विष्णु का चित्र एक चौकी पर स्थापित कर उन पर पीले पुष्प अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होगी।
पूजा के दौरान श्रीमद्भगवदगीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें।
फिर 108 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
ध्यान रहे कि एकादशी के दिन भूलकर भी तुलसी के पत्ते न तोड़ें।