रालामंडल अभयारण्य की पहचान यहां पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के सांपों की वजह से तो थी ही, अब यह पक्षियों के लिए भी पहचाना जाएगा। पक्षी प्रेमियों ने यहां फोटोग्राफी के जरिए 49 तरह के बर्ड की पहचान की है। यही नहीं एक बर्ड एप भी बनाया गया है, जिसमें बताया गया है कि किस पक्षी को रालामंडल में कहां पर देखा गया है। उसकी शॉर्ट हिस्ट्री भी इसमें डाली गई है।
रालामंडल के सांपों पर पीएचडी भी की जा चुकी है। घरों से निकलने वाले सांप, नागपंचमी पर पकड़े गए सांप पूर्व में रालामंडल में ही छोड़े जाते थे। मिश्रित प्रजातियों के पौधे, मियावाकी पद्धति से बनाई ग्रीन वॉल की वजह से अब यहां तरह-तरह के बर्ड भी नजर आने लगे हैं। सुबह और शाम के वक्त हर मिनट में अलग-अलग बर्ड की आवाज इसी वजह से आती है।
सर्टिफिकेशन के लिए भेजे फोटो
डीएफओ नरेंद्र पंडवा के मुताबिक फरवरी के अंत में पक्षियों की पहचान करने के लिए अजय गड़ीकर, रितेश खांबिया, अनिल नागर, अभिषेक पालीवाल, सचिन मतकर, अंशुमान शर्मा की टीम ने सुबह पांच से लेकर आठ बजे तक और शाम के समय तकरीबन पूरा अभयारण्य घूमकर बर्ड के फोटो लिए। पांच हजार से ज्यादा फोटो पूरी टीम ने खींचे। फिर इनका मिलान किया गया। एनिमल जोन में करीब एक-एक घंटे तक पक्षियों के आने का इंतजार किया। कुछ पक्षी बहुत आसानी से दिख भी गई। शॉर्ट टाइड स्नैक ईगल, ईयूशियन, स्पेरो हाॅक, डेलीकेट प्रिनिया, पेरीगार्डन, फाल्कन, ब्लू कैप्ड, राॅॅक थ्रश, लाग बिल्ड पीपीट, जंगल नाइट जाट, शॉर्ट टोड जैसे बर्ड दिखाई दिए। टीम ने बर्ड एप भी बनाया, जिसमें इनकी जानकारी लोकेशन की डिटेल दी गई है।
काले हिरणों का कुनबा भी पनप रहा
डीएफओ के मुताबिक रालामंडल के डियर सफारी एरिया में हिरणों का कुनबा खूब पनप रहा है। ब्लैक बग की संख्या ही 40 से अधिक हो गई है। कुल चीतल, सांभर, ब्लैक बग की संख्या मिलाकर 200 के करीब होने आई है। डियर सफारी एरिया में हिरणों के लिए दालें उगाई गई हैं। जगह-जगह पेयजल की व्यवस्था भी की गई है। खास बात यह है कि इनका शिकार कोई दूसरा जानवर भी नहीं करता है। इस कारण भी संख्या हर साल बढ़ती जा रही है।