आज सावन महीने का दूसरा सोमवार है। इस दिन सोमवती अमावस्या भी है। 57 साल बाद ऐसा संयोग बना है, जब श्रावण माह के सोमवार के दिन सोमवती हरियाली अमावस्या पड़ी है। इससे पहले यह योग 1966 में बना था। श्रद्धालु ने शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर महाकाल के दर्शनों के लिए पहुंचे। महाकालेश्वर मंदिर के पट रात 2:30 बजे खोल दिए गए। बड़ी संख्या में श्रद्धालु अल सुबह होने वाली भस्म आरती में शामिल होने पहुंचे थे। भीड़ अधिक होने की वजह से प्रोटोकॉल दर्शन व्यवस्था को पूरी तरह से बंद किया गया है। नंदी हॉल को भी बंद कर दिया है। शाम 4 बजे भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाएगी। इस दिन महाकाल चन्द्रमौलेश्वर के रूप में दर्शन देंगे।
सावन के दूसरे सोमवार को अल सुबह जल से बाबा महाकाल काे स्नान कराया। इसके बाद दूध, दही, घी, शक्कर, शहद फलों के रस से बने पंचामृत पूजन किया। भांग, चंदन, ड्रायफ्रूट से दिव्य श्रृंगार किया। इसके बाद भस्म अर्पित की गई। रजत का त्रिपुण्ड, त्रिशूल और चंद्र अर्पित कर शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुण्डमाल और रुद्राक्ष की माला के साथ फूलों की माला भी धारण कराई। फल और मिष्ठान का भोग लगाया। महा निर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल को भस्म अर्पित की गई। मान्यता है कि भस्म अर्पित करने के बाद भगवान निराकार से साकार रूप में दर्शन देते हैं।
रात 1 बजे से लगने लगी लाइन
महाकाल मंदिर में दो महीने तक चलने वाले महा उत्सव के दूसरे सोमवार को बड़ी संख्या में दर्शनों के लिए रात 1 बजे से लाइन लगना शुरू हो गई थी। महाकाल मंदिर समिति के प्रशासक संदीप सोनी ने बताया कि दूसरे सोमवार के दिन भी पहले की तरह व्यवस्था रहेगी। सोमवती अमवस्या होने के चलते 4 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। इस दौरान भक्तों को 40 मिनट में भक्तों को दर्शन मिल सकेंगे। सोमतीर्थ कुंड पर श्रद्धालुओं को लिए फव्वारे लगाए हैं। अमावस्या पर्व और महाकाल की सवारी पर भीड़ प्रबंधन करना चुनौतीपूर्ण होगा।
57 वर्ष बाद विशेष संयोग
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार 17 जुलाई सोमवार को विशेष संयोग में सोमवती हरियाली अमावस्या का पुण्य काल आ रहा है। इसी दिन महाकाल की सवारी भी है। इससे पहले यह स्थिति 1966 में बनी थी। तब भी सावन महीने में अधिक मास के दौरान सोमवार को अमावस्या का योग बना था। पौराणिक मान्यताओं व शास्त्रीय गणना के अनुसार इस योग-संयोग में सोमवती हरियाली अमावस्या का होना साधना, उपासना, दान और ग्रहों की अनुकूलता के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
सोम तीर्थ व शिप्रा में स्नान के लिए पहुंचे भक्त
स्कंद पुराण के अवंतिखंड में सोमेश्वर तीर्थ की पारंपरिक मान्यता है। सोमवार के दिन अमावस्या आने पर यहां सोमेश्वर का पूजन किया जाता है। स्नान की परंपरा और दान की मान्यता बताई गई है। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में भी सोमवती अमावस्या पर प्रदेश भर से श्रद्धालु अल सुबह से ही स्नान के लिए पहुंचने लगे हैं।