ग्वालियर जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूर डबरा शहर है। प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के गृहनगर के कारण पूरे प्रदेश में इस शहर की अपनी पहचान है, लेकिन इस शहर की एक नई पहचान बना रही है 22 साल की मंजेश पाल। मंजेश इन दिनों डबरा में ही किराए के मकान में रहती हैं। यूं तो वह दतिया जिले के छपरा गांव की हैं।
मंजेश जब सिर्फ छह साल की थीं, तभी उसके पैर और हाथ ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया। मंजेश उन दिनों को याद करते हुए उदास हो जाती हैं। कहती हैं- मैं उम्मीद छोड़ने लगी कि अब मेरी जिंदगी में कुछ पॉजिटिव हो सकता है। चारों तरफ निराशा ही थी। विसंगपुरा निवासी शिक्षक प्रेम नारायण छपरा शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल हुआ करते थे। उनका एक हाथ नहीं था। उन्होंने कहा कि बेटा हिम्मत नहीं हारना है। यदि प्रकृति ने अन्याय किया है, तो हमें उससे लड़ना है। आप हाथों से नहीं, मुंह से लिखने का अभ्यास करो। मैंने ऐसा ही किया और धीरे-धीरे मुंह से लिखना सीख गई।
स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई ऐसे ही पूरी की
मंजेश संघर्ष के बाद अपनी कामयाबी का किस्सा बताते हुए आत्मविश्वास से भरी नजर आती हैं। कहती हैं- मैंने पहले स्कूल, फिर कॉलेज की पढ़ाई मुंह से लिखकर ही पूरी की। फिलहाल B.ed प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही हूं।
…जज्बा देखकर हम भी नतमस्तक
मंजेश डबरा में ही प्रतियोगी परीक्षा के लिए कोचिंग में पढ़ने जाती हैं। कोचिंग सेंटर के शिक्षक रामनिवास का कहना है जब यह बच्ची मेरे पास आई, तो उसके जज्बे को देखकर हम भी नतमस्तक हो गए। साधन संपन्न होने के बाद भी कई बच्चे पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं होते, लेकिन मंजेश न सिर्फ गरीब परिवार से हैं, बल्कि शारीरिक चुनौतियों का सामना भी कर रही हैं, लेकिन उसकी लगन अद्भुत है। मैं अपने स्तर पर उसकी पूरी मदद कर रहा हूं।
साथी छात्राएं भी करती हैं मदद
मंजेश के साथ पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि वे कोचिंग में बड़े ध्यान से सर की पूरी बात सुनती है। पढ़ाई में अच्छी है। मुंह से लिखती है। पेज पलटने में हम मदद कर देते हैं। वह सभी छात्राओं के लिए प्रेरणा बन गई है। हम उसकी लगन देखकर कठिन परिश्रम का महत्व समझने लगे हैं।
सीएम ने बुलाया, सिक्योरिटी वालों ने भगा दिया
मंजेश कहती हैं सीएम शिवराज सिंह चौहान अच्छे इंसान हैं। दतिया में मिले थे, तो उनसे नौकरी मांगी थी। उन्होंने भोपाल बुलाया था। वहां गई तो सिक्योरिटी वालों ने मिलने नहीं दिया। भगा दिया। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से भी नौकरी मांगी थी, तब मैंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी नहीं की थी। उन्होंने कहा था कि ग्रेजुएशन करने के बाद आकर मिलो, नौकरी दिला दूंगा। इसके बाद उनसे मुलाकात नहीं हो सकी है, लेकिन उम्मीद है कि वो जरूर कुछ न कुछ मेरे लिए करेंगे। फिलहाल कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हूं।
गरीबी के कारण बीमारी का नाम भी नहीं पता
मंजेश के पिता नारायण सिंह बघेल और माता किशोरी बाई मजदूर हैं। किशोरी बाई का पैर भी खराब है। उन्हें भी चलने में परेशानी होती है। मंजेश को जब यह परेशानी शुरू हुई तो उसी समय थोड़ा-बहुत इलाज कराया, फिर छोड़ दिया। गरीबी के कारण ज्यादा जांच नहीं कराई। पता भी नहीं चला कि बीमारी कौन सी है, जिसके कारण हाथ और पैर ने काम करना बंद कर दिया।
मंजेश की एक छोटी बहन मालती है। क्लास 12th में पढ़ रही है, वह पूरी तरह स्वस्थ है। भाई मलखान बघेल की शादी हो चुकी है उसका 2 वर्ष का बच्चा है। मंजेश ने बताया है कि वह अपनी गर्दन को स्टेबल नहीं कर पाता जिसके कारण काफी परेशानी है। वह बैठ भी नहीं पाता, उसका इलाज करा रहे हैं।