सागर से करीब 65 किमी दूर स्थित देवरी में देव श्रीखंडेराव का प्रसिद्ध अग्नि मेला प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी शुरू होने वाला है। यह मेला अगहन माह की चंपा षष्ठी से शुरु होता है जो इस वर्ष 29 नवंबर से शुरु होगा और 8 दिसंबर तक चलेगा। मेले में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने पर अग्नि कुंड में डले दहकते अंगारों पर से निकलते हैं। मेले की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं।देवरी के खंडेराव वार्ड में भगवान खांडेराव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर 15 से 16 वीं सदी के बीच का बताया जाता है। यहां हर साल अगहन शुक्ल में चंपा षष्ठी से पूर्णिमा तक मेला लगता है। इस मंदिर की प्रसिद्धि प्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों में है। मेले के दौरान अग्निकुंड से निकलने की किवदंती राजा यशवंतराव के बेटे के स्वास्थ्य से जुड़ी है। जानकार बताते हैं कि एक बार राजा यशवंतराव के पुत्र बीमार हो गए।तब देव खंडेराव ने दर्शन देकर कहा कि हल्दी के उल्टे हाथ लगाएं। भट्टियां खोदकर अंगारे डाले और हाथ से हल्दी डालकर अग्नि के ऊपर से निकलें तो उनका बेटा स्वस्थ हो जाएगा। उन्होंने ऐसा किया और बेटा ठीक हो गया। तभी से यह प्रथा शुरू हो गई और लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर देव श्रीखंडेराव के अग्नि मेले में नंगे पांव आग के ऊपर से चलते हैं।
12 बजे पिंड पर पड़ती हैं सूर्य की किरणें
प्राचीन श्रीखंडेराव मंदिर वास्तुकलां की एक अद्भुत मिसाल है। मंदिर में एक विशेष छिद्र है। जिसमें साल में एक बार अगहन माह की षष्ठी के दिन सूर्य की किरणें शिवलिंग की पांच पिंडों पर ठीक 12 बजे पड़ती हैं। तब लोग अग्निकुंड में से निकलते हैं। पंडित बताते हैं कि जब नवंबर में चंपा षष्ठी पड़ती है, तब सूर्य की किरणें शिव की पांच पिंडों पर पड़ती हैं। अगर दिसंबर माह में चंपा षष्ठी पड़ती है तो कई बार सूर्य की किरणें पिंडों पर नहीं पड़ती। मंदिर प्रबंधक नारायण मल्हार वैद्य देव प्रधान के पुजारी हैं।