क्या सबसे पुरानी जनजाति है कोरकू? देश में पहली बार रूस के पेलेन्थ्रोपोलॉजी रिसर्च सेंटर और सागर-पुणे विवि कोरकू पर करेंगे वृहद शोध, एमओयू हुआ

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अभी तक दावा किया जाता है कि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली काेरकू जनजाति दुनिया की सबसे प्राचीन जनजाति है। इसी तथ्य की पुष्टि के लिए रूस का पेलेन्थ्रोपोलॉजी (जीवाश्म विज्ञान) रिसर्च सेंटर सागर और पुणे के विश्वविद्यालय के साथ मिलकर शोध करेगा। डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग (एंथ्रोपोलॉजी) के विद्यार्थी और शिक्षक रूस के वैज्ञानिकों और शोधार्थियों के साथ मिलकर शोध कार्य करेंगे।

रूस के पेलेन्थ्रोपोलॉजी रिसर्च सेंटर के साथ विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग का एमओयू साइन हुआ है। उसी के तहत यह काम होगा। इस शोध के दौरान एशिया के लोगों की विविधता को लेकर विभिन्न पैरामीटर पर डेटा कलेक्ट होगा और जनसंख्या पर शोध किया जाएगा। जेनेटिक सीक्वेंसिंग के आधार पर देखा जाएगा कि कोरकू जनजाति कितनी पुरानी है। फिलहाल यह तय नहीं है कि यह शोध कितनी अवधि तक चलेगा।

इस प्रोजेक्ट के तहत देशभर से डेटा कलेक्शन के बाद उसका टेबुलेशन, परीक्षण, परिणामों पर काम चलेगा। कुछ काम सागर विश्वविद्यालय में होगा तो कुछ पुणे के विश्वविद्यालय में और कुछ काम रूस के पेलेन्थ्रोपोलॉजी रिसर्च सेंटर में होगा। ऐसे में यही कहा जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट काफी लंबा चलेगा।

सागर विवि के विद्यार्थियों को एक्सपोजर मिलेगा

एमओयू में तय हुआ है कि दोनों ही संस्थान एक-दूसरे के विद्यार्थियों, शोधार्थी और शिक्षकों के लिए सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे, जो उन्हें शोध कार्य में मददगार साबित होगी। इसके साथ ही समय-समय पर वर्कशॉप भी होंगी, जिनके माध्यम से दोनों जगह के प्रोफेसर, विद्यार्थी एक-दूसरे के यहां प्रचलित नई-पुरानी तकनीक की जानकारियां ले सकेंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सागर विवि के विद्यार्थियों को बढ़ा एक्सपोजर मिलेगा। वे शोध कार्य के लिए पुणे और रूस जा सकेंगे। वहां मानव विज्ञान के क्षेत्र में चल रही नई तकनीकों को भी सीख सकेंगे। रूस के वैज्ञानिक भारत आएंगे।

इसका जवाब खोजने मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र के जंगलों में जाएंगे रूस के वैज्ञानिक

  • कोरकू जनजाति पर इन बिंदुओं पर शोध होगा
  • इस जनजाति की उत्पत्ति संबंधी मामलों पर शोध किया जाएगा।
  • यूरेशिया (एशिया और रूस) की जनजातियों से तुलनात्मक अध्ययन।
  • मानव अनुवांशिकी विकास और बायोलॉजिकल विकास का अध्ययन।
  • जनजातीय संस्कृति, सामाजिक संबंध, लोक साहित्य, धार्मिक मान्यताएं भी इस शोध में शामिल की जाएंगी।
  • प्राचीन और वर्तमान जनजातीय जनसंख्या का तुलनात्मक अध्ययन।

मध्यप्रदेश के छह जिलों में है काेरकू जनजाति
कोरकू जनजाति मध्यप्रदेश में सतपुड़ा पर्वत माला के जंगलों से लगे छिंदवाड़ा के मवासी, बैतूल जिले की भैंसदेही और चिचोली तहसील, हरदा जिले की टिमरनी और खिरकिया तहसील, खंडवा जिले की खालवा तहसील, देवास जिले की बागली और उदयनगर तहसील के अलावा सीहोर जिले के दक्षिणी हिस्से में निवास करती है। महाराष्ट्र में अकोला, मेलघाट तथा मोर्शी तहसीलों में भी रहते हैं।

सन 1991 की जनगणना के आधार पर कोरकुओं की कुल जनसंख्या 4,52,149 थी। कोरकू मुण्डा या कोलारियन जनजातीय समूह में आते हैं। कोरकू का शाब्दिक अर्थ है मानव समूह। इनके बीच कोरकू भाषा ही बोली जाती है। यह दुनिया की सबसे प्राचीन जनजाति मानी जाती है।

पहली बार वृहद शोध होगा, नए तथ्य सामने आएंगे
“रूस के पेलेन्थ्रोपोलॉजी रिसर्च सेंटर से एमओयू हुआ है। इसके तहत हम कोरकू जनजाति पर वृहद शोध करेंगे। हमारे विभाग ने पहले भी इस जनजाति पर शोध किए हैं। इसमें कई नए तथ्य सामने आएंगे।”
– प्रो.राजेश गौतम, विभागाध्यक्ष, मानव विज्ञान विभाग, सागर विवि

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