मैं चाहती थी कि मेरी बेटी के कातिल को फांसी हो, फिर भी संतोष है कि उसे उम्रकैद तो मिली। उसे उसके गुनाह की सजा तो मिली। तीन साल होने को आए। दिलो-दिमाग से बेटी की याद नहीं जाती। जब भी याद करती हूं, आंसू छलक आते हैं। बेटी पढ़ लिख कर वकील बनना चाहती थी, लेकिन डॉक्टर ने सब कुछ खत्म कर दिया। मैं थाने के चक्कर काटती रही। सुबह जाती, शाम को वापस आती। कई दिन ऐसे ही चलता रहा। सुनवाई नहीं हुई, तो सीएम हेल्पलाइन में शिकायत कर दी। तब कहीं जाकर पुलिस एक्टिव हुई।
18 दिसंबर 2021 की रात। उस सर्द रात हम लोग टकटकी लगाए दरवाजे की ओर निहार रहे थे। हर आहट पर नजर थी, लेकिन गहराती रात के साथ मेरा इंतजार भी …। तनिक भी अंदेशा नहीं था कि यह इंतजार अब कभी खत्म नहीं होगा। यह रात जीवन की काली रात बन कर कानून के पन्नों में दर्ज हो जाएगी। बेटी के इंतजार में बिछी आंखें आने वाले दिनों में रो-रोकर पथरा जाएंगी। अब सिर्फ यादें ही रह गई हैं।
यह पीड़ा है मध्यप्रदेश के सतना के धवारी मल्लाहन टोला में रहने वाले राम नरेश केवट और रुक्मिना केवट की। उनकी एलएलबी की स्टूडेंट बेटी भानू एक डॉक्टर की हैवानियत की शिकार हो गई। डॉक्टर ने उसे प्रेम जाल में फंसाया, शादी के सपने दिखाए। बाद में बेरहमी से कत्ल कर दिया। डॉक्टरी जैसे प्रोफेशन में होने के बावजूद शातिर अपराधी जैसी सोच रखने वाले कातिल डेंटल सर्जन लाश को क्लीनिक में ही रख कर मरीज भी देखता रहा, लेकिन किसी को भनक तक नहीं लगी। किसी को शक न हो, इसलिए उसने शव को कुत्ते की लाश के साथ दफना दिया। यही नहीं, भानू के माता-पिता को भी गुमराह करता रहा। तो यह फिल्म ‘दृश्यम’ से मिलती-जुलती स्टोरी जैसी निकली। वर्ष 2021 में डेंटल डॉक्टर ने नर्स की हत्या कर दी। किसी को शक न हो, इसलिए उसने कुत्ते की लाश के साथ दफनाया। डॉक्टर की निशानदेही पर पुलिस ने शव को निकलवाया।
4 दिन पहले आरोपी डाॅक्टर को सुनाई उम्रकैद
16 मार्च को मामले में कोर्ट ने आरोपी डेंटिस्ट आशुतोष त्रिपाठी को उम्रकैद सुनाई है। डाॅ. त्रिपाठी की क्लीनिक में भानू नर्स थी। वह रिसेप्सनिस्ट का भी काम देखती थी। डॉक्टर ने नर्स को शादी का प्रस्ताव दिया, जब नर्स ने मना कर दिया, तो उसकी हत्या कर दी। मां ने बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराई। पुलिस ने नर्स और डाॅक्टर के मोबाइल रिकाॅर्ड खंगाला। जांच के बाद 20 फरवरी 2021 को डाॅ. त्रिपाठी काे गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने उसकी निशानदेही पर क्लीनिक के बाहर दफन शव को 58 दिन बाद सड़ी-गली अवस्था में बरामद किया।
पूरी कहानी, कैसे आरोपी तक पहुंची पुलिस
फर्नीचर की दुकान में काम करने वाले रामनरेश केवट की चार बेटियां हैं। इनमें भानू दूसरे नंबर की थी। पढ़ने-लिखने में भी वह होशियार थी। वह वकील बनना चाहती थी, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लिहाजा, उसने पढ़ाई के साथ डेंटल क्लीनिक पर बतौर असिस्टेंट नौकरी जॉइन कर ली। ये क्लीनिक पेशे से डेंटिस्ट डॉ. आशुतोष त्रिपाठी का था। उसे तीन हजार रुपए मिलते थे।
क्लीनिक घर के पास ही था, जहां से वह रोज शाम ड्यूटी कर वापस घर भी आ जाती थी। डॉक्टर भी उसका ख्याल रखता था। देर हो जाने पर वह उसे घर तक छोड़ने भी आता था, लेकिन उस रात न तो भानू लौटी और न ही उसे पहुंचाने डॉक्टर आया। रात 9 बजे से आगे बढ़ती घड़ी की सुइयां रामनरेश और रुक्मिना की बेचैनी बढ़ाने लगीं। वे बेटी का फोन ट्राय करने लगे, लेकिन जवाब नहीं मिला। किसी तरह रात गुजरी। सुबह पिता ने क्लीनिक पहुंच कर डॉक्टर से संपर्क किया।
डॉक्टर धवारी रैन बसेरा के बाजू में स्थित क्लीनिक पर ही मिला। उसने राम नरेश को बताया कि उसने भानू की दूसरी जगह नौकरी लगवा दी है, जहां उसे ज्यादा सैलरी भी मिलेगी। तरक्की भी कर लेगी। उसने पूछने पर भी नहीं बताया कि आखिर भानू को नौकरी पर कहां रखवाया है? पिता ने घर पर सब को यही जानकारी दी, लेकिन फिर भी किसी का मन मानने को तैयार नहीं था। जब तक कि भानू खुद नहीं बता देती। लिहाजा, घरवालों ने भानू के फोन पर फिर संपर्क किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।
इस बीच, डॉक्टर उनके घर पहुंचा। भानू का दूसरे मोबाइल भी यह कह कर ले गया कि मोबाइल खराब हो जाने के कारण भानू ने ही यह फोन मंगवाया है। इस बार भी जब घर वालों ने बेटी का ठिकाना पूछा, तो वह यह कहकर निकल गया कि भानू ने तब तक किसी को कुछ बताने से मना किया है, जब तक कि वो सेटल नहीं हो जाती। डॉक्टर की ये गोलमोल बातें घर वालों को चिंता में डालती रहीं।
कभी पिता, कभी मां और कभी भानू की छोटी बहन को वह पता बताने के लिए बुलाता रहा, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर लौटा देता। इस बीच, छोटी बहन के मोबाइल पर भानू के नंबर से मैसेज भी आते रहे, जिसमें यह लिखा होता कि वह जल्द ही लौट आएगी। इन मैसेजेस से घर वालों को लगता रहा कि डॉक्टर ने उसे सच में कहीं नौकरी पर ही रखवा दिया है। इसी असमंजस के बीच वक्त गुजरता रहा।
इधर, मां का मन बेटी के लिए परेशान था। वह बातें सुन तो सब की रही थी, लेकिन उसका दिल मानने को तैयार नहीं था। लिहाजा, वह सिटी कोतवाली पहुंची। उसने बेटी के जाने के करीब 42 दिन बाद गुमशुदगी दर्ज करा दी। फरवरी महीने में सब इंस्पेक्टर अजय शुक्ला ने पड़ताल शुरू तो कर दी, लेकिन भानू का पता नहीं चला। डॉक्टर से भी पूछताछ हुई, लेकिन उसने पुलिस को भी कुछ नहीं बताया। उधर, मां हर रोज थाने के चक्कर काटती। शाम को निराश हो कर लौट आती। परेशान होकर रुक्मिना ने सीएम हेल्प लाइन में शिकायत दर्ज करा दी।
अब पुलिस और एक्टिव हुई। जांच का जिम्मा तत्कालीन थाना प्रभारी सिटी कोतवाली अर्चना द्विवेदी ने अपने हाथ में लिया। आशुतोष पेशे से डॉक्टर था। पुलिस ने पहले तो सलीके से पूछताछ की। जब वह पुरानी रटी-रटाई कहानी ही सुनाता रहा, तो उसे कोतवाली तलब कर लिया गया। वहां दूसरे आरोपियों के साथ पुलिसिया तरीके से पूछताछ की। उसके रोंगटे तब खड़े हो गए, जब डॉक्टर को बताया गया कि अब नंबर उसका है। अब खुद को फंसता देख वह टूट गया। फफक कर रो पड़ा। डर के आंसुओं के साथ उसने दरिंदगी की जो कहानी सुनाई, उसने सब के होश फाख्ता कर दिए।
डॉक्टर ने सुनाई रोंगटे खड़े करने वाली कहानी
डॉ. आशुतोष ने 20 फरवरी 2022 को पुलिस के सामने जुर्म कबूल कर लिया। बताया- उसने 18 दिसंबर 2021 की रात ही भानू को मार दिया था। क्लीनिक के अंदर ही उसने उसी के दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया था। उस वक्त कुछ समझ नहीं आया, तो लाश को बोरे में बांध कर क्लीनिक में ही टेबल के नीचे छिपा दिया था। मैं उस रात क्लीनिक बंद कर घर चला गया था। अगले दिन लाश को चेंबर में टेबल के नीचे ही रखे हुए पेशेंट देखता रहा, लेकिन मैं वह ज्यादा दिनों तक नहीं कर सकता था, इसलिए लाश को ठिकाने लगाना भी जरूरी था।
मेरे दिमाग में क्लीनिक के बगल में रैन बसेरा और टॉयलेट देख कर आइडिया आया। मजदूर बुलवा कर रैन बसेरा और क्लीनिक के बीच खाली पड़ी जगह पर गड्ढा खुदवाया। आसपास के दुकानदारों को मैंने बताया कि टॉयलेट का पानी खाली जगह पर गिरने से क्लीनिक में सीवेज की समस्या हो रही है। इसके लिए यहां चैंबर बनवाना है। गड्ढा खुदवा कर मजदूरों को वापस भेज दिया। रात में भानू की लाश खुद ही उस गड्ढे में डाल दी। बाजार से नमक की बोरी भी ले आया। लाश के ऊपर नमक डाल दिया। रास्ते में एक कुत्ता मरा मिला, जिसे मैं उठा लाया। मैंने भानू की लाश और नमक के ऊपर मिट्टी की परत बिछाई। फिर कुत्ते की लाश डाल कर गड्ढे को बंद कर दिया।
पहले तो पुलिस को उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन फिर तस्दीक के लिए मजदूर बुलवा कर गड्ढा खुलवाया गया। पहले गड्ढे से कुत्ते का कंकाल निकला। उसके नीचे 58 दिन बाद कंकाल में तब्दील हो चुकी भानू भी मिल गई। मामले की जांच अधिकारी टीआई अर्चना द्विवेदी ने बताया कि कंकाल को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया। कंकाल भानू का ही है, इसकी पुष्टि के किए डीएनए टेस्ट कराया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। डेंटल सर्जन आशुतोष त्रिपाठी को गिरफ्तार कर प्रकरण अदालत में पेश किया गया, जहां से उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
शादी के लिए कहने पर ले ली जान
जांच अधिकारी टीआई अर्चना द्विवेदी ने बताया कि डॉ. त्रिपाठी ने शादी का वादा कर भानू को प्रेम जाल में फंसा लिया था। इधर, भानू की बड़ी बहन की भी शादी तय थी। इसके बाद उसका ही नंबर था। उधर, डॉक्टर की शादी के लिए भी रिश्ते आ रहे थे। यह जानकारी भानू को थी। लिहाजा, वह डॉक्टर से शादी के लिए कहने लगी थी, लेकिन डॉक्टर अब इसके लिए राजी नहीं था।
वारदात की रात भानू और डॉ. त्रिपाठी के बीच इसी बात पर विवाद हुआ था। इसके बाद भानू यह कह कर क्लीनिक से निकलने लगी थी कि वह सब को इस बारे बता देगी। नाराजगी में भानू के बाहर निकलते वक्त डॉ. त्रिपाठी ने पीछे से उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ सिर्फ भानू का दुपट्टा आया, उसने दुपट्टा पकड़ कर भानू को पीछे खींचा। उसे सिर के बल फर्श पर पटक दिया। वह बेहोश हो गई। फिर डॉक्टर ने उसी दुपट्टे से गला घोंट दिया।
मोबाइल और दुपट्टे ने दिलाई सजा
मामले में सतना के सप्तम अपर सत्र न्यायाधीश यतीन्द्र कुमार गुरु की अदालत में सुनवाई शुरू हुई। शासन की ओर से सहायक अभियोजन अधिकारी बृजेन्द्र नाथ शर्मा ने साक्ष्य और गवाह प्रस्तुत किए। मामले में भानू का मोबाइल और दुपट्ट अहम सबूत बने। इन्हीं के कारण उसे सजा मिल सकी। भानू का मोबाइल आरोपी डॉक्टर ही ऑपरेट कर रहा था। वह उसकी बहन को मैसेज भी करता था। लिहाजा उसके और भानू के मोबाइल की लोकेशन एक ही साथ मिली। सीडीआर में ये झूठ पकड़ा गया। आरोपी ने मेमोरेंडम कथन में जिस दुपट्टे से गला दबाने की बात स्वीकारी थी, वह दुपट्टा शव के साथ भी मिल गया।