भोज पत्र पर लिखी अर्जी स्वीकारते हैं संकट मोचन बैतूल के 200 साल पुराने मंदिर से जुड़ी मान्यताएं, यहां पांडवों ने छिपाए थे अस्त्र-शस्त्र

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कहते हैं कि कलयुग में पवन पुत्र हनुमानजी की शरण में जो भी जाता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। व्यक्ति जो भी मनोकामना लेकर जाता है, उसकी मुराद जरूर पूरी होती ही है।

ऐसी ही मान्यता बैतूल के टिकारी स्थित दक्षिण मुखी हनुमान सिद्ध पीठ मंदिर से जुड़ी है। कहा जाता है कि 200 साल पुराने इस मंदिर में आने वालों की मन्नत पूरी होती है। यहां शनिवार और मंगलवार को श्रद्धालु आकर संकट मोचन हनुमान जी के चरणों में अर्जी लगाते हैं। यह अर्जी भी खास तौर से भोज पत्र पर या पीपल के पत्ते पर लिखी जाती है। श्रद्धालु इन पत्राें पर समस्या लिख कर या श्री राम लिख चढ़ाते हैं।

मन्नत पूरी होने पर भक्त शनिवार को महा आरती के साथ प्रसादी बांटते हैं। यही नहीं, मंदिर में लगे शमी के पेड़ को लेकर भी किवंदती है। बताया जाता है कि इसी पेड़ के नीचे कभी पांडवों ने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। चैत्र मास की पूर्णिमा यानी 6 दिसंबर को हर साल हनुमान जी के भक्त उनका जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

चैत्र मास की पूर्णिमा यानि 6 दिसंबर को प्रतिवर्ष संकट मोचन हनुमान जी के भक्त उनका जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

जानिए, बैतूल में 200 साल पुराने मंदिर से जुड़ी मान्यताएं…

बैतूल जिला मुख्यालय के टिकारी क्षेत्र में स्थित 200 साल पुराने दक्षिण मुखी हनुमान सिद्ध पीठ मंदिर में श्रद्धालुओं की विशेष आस्था है। यहां आम दिनों में भी श्रद्धालुओं की आवाजाही से परिसर गुलजार रहता है। वहीं, हनुमान जयंती पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं यहां दर्शन करने आते हैं। वजह है कि इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में कोई समस्या से पीड़ित है, तो कई लोग बीमारी से राहत पाने के लिए अर्जी लगाने पहुंचते हैं। किसी को घरेलू परेशानी से मुक्ति चाहिए।

हनुमान जयंती पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं यहां उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इसकी वजह यह है कि इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं।
हनुमान जयंती पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं यहां उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इसकी वजह यह है कि इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं।

सिंदूर से लिखकर चढ़ाते हैं अर्जी

मंदिर में अर्जी लगाने का तरीका बाकी मंदिरों से थोड़ा अलग है। यहां जो भी श्रद्धालु मनोकामना लेकर पहुंचते हैं, वे भोज पत्र या पीपल के पत्ते पर सिंदूर से लिख कर हनुमान जी के चरणों में चढ़ाते हैं। अर्जी लगाने की यह प्रक्रिया ही भगवान से भक्त को जोड़ने की ऐसी कड़ी है, जो उनकी मुराद पूरी करती है। चाहे वह मुराद बीमारी दूर करने की हो या कोर्ट में चल रहे केस में न्याय पाने की। हालांकि, मंदिर में यह परंपरा कब से शुरू हुई इसे लेकर कोई भी स्पष्ट नहीं बता पा रहा है। बताया जाता है कि भोज पत्र या पीपल के पत्ते पर अर्जी लिखने की परंपरा मंदिर की स्थापना के बाद शुरू हुई है।

भोज पत्र या पीपल के पत्ते पर अर्जी लिखने की परंपरा मंदिर की स्थापना के बाद शुरू हुई है। जो साल-दर-साल चली आ रही है।
भोज पत्र या पीपल के पत्ते पर अर्जी लिखने की परंपरा मंदिर की स्थापना के बाद शुरू हुई है। जो साल-दर-साल चली आ रही है।

पट खुलते ही पहले शनिदेव करते हैं दर्शन

खास है कि मंदिर परिसर में विराजित हनुमान प्रतिमा के दाहिने हाथ में संजीवनी पर्वत और बाएं भुजा में मुदगल है। इस मंदिर के सामने बड़ा शमी का वृक्ष लगा है, जो अनोखा संयोग माना जाता है। लोगों की मान्यता है कि शमी के वृक्ष में शनिदेव वास करते हैं, इसलिए मंदिर के पट खुलते ही सबसे पहले वे दर्शन करते हैं।

श्रद्धालुओं का दावा है कि मंदिर में अगर कोई भाव लेकर आए, तो बगैर मांगे हनुमान जी मन्नत पूरी करते हैं। श्रद्धालु कमल पवार का दावा है कि उनकी बेटी को डॉक्टर ने ब्रेन ट्यूमर बता दिया था। जब उन्होंने यहां अर्जी लगाई। दोबारा चेक करा,या तो ब्रेन ट्यूमर नहीं निकला।

मंदिर परिसर में शिवलिंग भी विराजमान है।
मंदिर परिसर में शिवलिंग भी विराजमान है।

मालगुजार ने बनवाया था मंदिर

बताया जाता है कि अंग्रेजों के समय में स्थापित संकट मोचन की मूर्ति को क्षेत्र में नि:संतान मालगुजार साहेब लाल पटेल ने स्थापित करवाया था। करीब साढ़े चार फीट ऊंची प्रतिमा दिव्यता लिए हुए है। उस समय मंदिर प्रांगण में बावड़ी का निर्माण भी करवाया गया था। कहा जाता है कि बावड़ी से खेड़ला और राम मंदिर तक गुप्त सुरंग के जरिए रास्ता जाता था। जो वक्त के साथ बंद हो गया। समय के साथ और भक्तों की बढ़ती संख्या से मंदिर को भव्य रूप दिया गया। संकट मोचन हनुमान के दरबार ज्यादातर पीड़ित श्रद्धालु आते हैं। मनोकामना पूरी होते ही वे इस दरबार से जुड़ जाते हैं।

महाभारत काल में पांडवों ने अस्त्र-शस्त्र इसी पेड़ पर छिपाए थे। यह पेड़ भी मंदिर के ठीक सामने है।
महाभारत काल में पांडवों ने अस्त्र-शस्त्र इसी पेड़ पर छिपाए थे। यह पेड़ भी मंदिर के ठीक सामने है।

शमी के पेड़ में पांडवों ने छिपाए थे अस्त्र-शस्त्र

मंदिर समिति के पदाधिकारी तरुण ठाकरे बताते हैं कि दक्षिणमुखी यह मंदिर विलक्षण है। जहां भगवान के दाहिने हाथ में संजीवनी पर्वत है। जब हनुमान जी संजीवनी लेने गए थे। तब पर्वत दाहिने हाथ में ही था। शमी के पेड़ जिसके बारे में मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अस्त्र-शस्त्र इसी पेड़ पर छिपाए थे। यह पेड़ भी मंदिर के ठीक सामने है। शनि और हनुमान के एक साथ दर्शन होते हैं।

दक्षिणमुखी यह मंदिर अपने आप में विलक्षण है। जहां भगवान के दाहिने हाथ में संजीवनी पर्वत है।
दक्षिणमुखी यह मंदिर अपने आप में विलक्षण है। जहां भगवान के दाहिने हाथ में संजीवनी पर्वत है।

पुजारी बोले- भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता

मंदिर के प्रभारी राधेश्याम सोनी का कहना है कि यहां आने वाले पीड़ितों को चाहे वह प्रेत बाधा, बाहरी बाधा से ग्रस्त हो या फिर उन्हें सुख संतान प्राप्ति की कामना हो, उनकी मनोकामना पूरी होती है। अपने भक्तों के संकट को दूर करने वाले राम भक्त हनुमान की शरण कैसी भी तकलीफ या परेशानी लेकर उनका भक्त जाए, वह खाली हाथ नहीं जाता। उन्हें सच्चे दिल याद करे, तो भी उसकी समस्या का हल हो जाता है।

मंदिर में राम दरबार भी स्थापित किया गया है। यहां शिवजी और भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाएं भी है।
मंदिर में राम दरबार भी स्थापित किया गया है। यहां शिवजी और भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाएं भी है।

यहां बने हैं राम दरबार, भगवान विष्णु का मंदिर

मंदिर में राम दरबार भी स्थापित है, जबकि शिवजी और भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। रोज प्रातः यहां इन मंदिरों में भी भगवान की अर्चना के लिए लोगों की भीड़ उमड़ने लगती है। राम दरबार में खास तौर पर भक्त मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं। हनुमान जी को भक्त दद्दा के नाम से पुकारते हैं।

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