10 साल से ‘विशेष’ बच्चों की देखभाल में जुटी एक पाठशाला; स्पीच, फिजिकल व सेंसर थैरेपी से 5 हजार बच्चों का कर चुकी उपचार

शहर की एक पाठशाला अरुणाभ (सूर्य की आभा) प्राकृतिक चिकित्सा के साथ ही प्राकृतिक उत्पाद की मदद से दिव्यांग बच्चों का भविष्य संवार रही है। 2011 से शुरू इस पाठशाला में अब तक पांच हजार बच्चों का उपचार हो चुका है।

बिचौली हप्सी स्थित प्रगति पार्क व 43, टेलीफोन नगर स्थित दिव्यांग बच्चों के स्कूल अरुणाभ के संस्थापक आशीष गोविंद कट्‌टी ने बताया फिलहाल 23 बच्चे आ रहे हैं। टेलीफोन नगर में 12 वर्ष से छोटे और हर उम्र की लड़कियों व प्रगति पार्क में 13 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों को प्रशिक्षण मिल रहा है।

ऐसे कर रहे उपचार, कोई शुल्क भी नहीं

हर बच्चे को सामान्य कक्षा की तरह ट्रीट करते हैं। यानी 15 साल के बच्चे का आईक्यू यदि नर्सरी के बच्चे जितना है तो उसी स्तर का कोर्स उसे पढ़ाया जाता है। उन्हें लोक व्यवहार, खुद के काम, दिनचर्या का पालन करना भी सिखाते हैं। स्पीच, फिजिकल व सेंसर थैरेपी देने के साथ ही योग और अध्यात्म के जरिए मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य सुधारा जा रहा है। दानदाता और पालक स्वेच्छा से जो राशि देते हैं उसी से स्कूल का संचालन करते हैं।

कैंप में सेंट्रल इंडिया तक के बच्चे पहुंचते हैं

कट्‌टी ने बताया दिव्यांग बच्चों के लिए 4 साल से वर्ष में 6 मेडिकल कैंप लगा रहे हैं। अब तक 24 कैंप लगाए जा चुके हैं। पहले कैंप में 17 बच्चे आए थे वहीं कोरोना के पहले अंतिम कैंप में जयपुर, बिलासपुर, चित्तौड़गढ़, मालवा, निमाड़ सहित सेंट्रल इंडिया के करीब 1000 बच्चे पहुंचे थे। कैंप में 65 डॉक्टरों की सेवा ली गई, जिनमें इंदौर के भी चार डॉक्टर थे। जांचों के साथ ही बच्चों को दवाइयां भी नि:शुल्क दी गईं।

सिर्फ लड़कियों का पहला जैविक कैफे चलाएंगे दिव्यांग, होने वाली आय भी बच्चे रखेंगे

यहां से प्रशिक्षण प्राप्त दिव्यांग बच्चों द्वारा नए साल में टेलीफोन नगर में पहला ऐसा कैफे खोला जा रहा है, जहां सिर्फ लड़कियों को प्रवेश मिलेगा। कैफे में जैविक उत्पाद टमाटर, ककड़ी, लौकी इत्यादि के सूप के साथ ही तरह-तरह की चाय-कॉफी दी जाएगी। अस्थि बाधित, दृष्टि बाधित, मूक-बधिर सभी श्रेणी के दिव्यांग अपने-अपने स्तर के काम संभालेंगे। कैफे से जो आय होगी, वह सभी बच्चों को समान रूप से वितरित की जाएगी।

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