हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है शिक्षा की गुणवत्ता स्तर को बरकरार रखना। हम बच्चों को केवल डिग्रियां ही नहीं बांटना चाहते। इसलिए हमारा प्रयास है कि अब किसी भी विश्वविद्यालय में आनलाइन परीक्षा न हों।
मोहन यादव ने कहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद युवा नौकरी की तलाश मेंं जुट जाते हैं। पांच से सात प्रतिशत युवा ही सरकारी सेवाओं में जा पाते हैं, शेष 90 प्रतिशत से ज्यादा युवा निजी क्षेत्र में हाथ आजमाते हैं। निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक तौर पर बढ़ जाती है, इसलिए सरकार नई पीढी को डिग्रियां बांटने की बजाय उनकी योग्यता में गुणात्मक सुधार लाना चाहती है। इसलिए प्रदेश सरकार का प्रयास है कि मार्च में होने वाली महाविद्यालयीन परीक्षाओं में शामिल करीब 18 लाख परीक्षार्थी आफलाइन तरीके से शामिल हों। इसके लिए सभी अतिरिक्त संचालकों और विश्वविद्यालयों को आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं। जो परीक्षार्थी कोरोना की वजह से परीक्षाओं से वंचित रह गए थे- उनको एक मौका और दिया जा रहा है।
पीएससी से भरे जाएंगे सहायक प्रध्यापकों के और पद : मोहन यादव ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहायक प्राध्यापकों की कमी को भी चिंता का बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा कि लगभग 65 प्रतिशत पदों पर नियुक्तियां की जा चुकी है। शेष पदों के लिए मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से परीक्षा ली जाएगी। 2019 में चयनित सहायक प्राध्यापकों की परिवीक्षा 2021 में पूर्ण हो चुकी है, लेकिन उनको अब तक नियमित नहीं किया जा सका है, इससे जुड़े सवाल पर उच्च शिक्षा मंत्री का कहना रहा कि सभी अतिरिक्त संचालकों को निर्देशित गया है कि वो परिवीक्षा अवधि पूर्ण कर चुके सहायक प्राध्यापकों को नियमित करें। शासन का प्रयास है कि यह प्रक्रिया मार्च-अप्रैल तक पूर्ण हो जाए।
केवल अनुभव नहीं योग्यता भी होगी चयन का आधार : सरकार ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है कि जिस तरह से दूसरे विभागों में तदर्थ मेंं रखे गए लोगों को भर्तियों में प्राथमिकता दी गईं, उसी प्रकार से सहायक प्राध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया में भी अतिथि विद्वानों को लाभ दिया जाए। लेकिन इसके लिए केवल उनके अनुभव को आधार नहीं बनाया जाएगा अपितु संबंधित अतिथि विद्वान की योग्यता का भी मूल्यांकन किया जाएगा।