पन्ना टाइगर रिजर्व में 103 वर्षीय हथिनी वत्सला ने बीते सप्ताह भोजन लेना बंद कर दिया था। जिससे कमजोरी व तकलीफ के कारण हथिनी के स्वास्थ्य में गिरावट की स्थिति बन गई थी।
पन्ना टाइगर रिजर्व में पदस्थ पशु चिकित्सक डा. संजीव गुप्ता के नेतृत्व में वत्सला का इलाज जारी था लेकिन कुछ दिनों से मल-मूत्र न करने के लिए हथिनी की हालत और बिगड़ गई थी। पन्ना टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्अर उत्तम कुमार शर्मा ने स्कूल आफ वाइल्ड लाइफ फोरेंसिक एंड हेल्थ की संचालक डा. शोभा जावरे से इस संबंध में दूरभाष से संपर्क किया। इसके बाद नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विवि के कुलपति डा. एसपी तिवारी को इस बारे में जानकारी दी गई। कुलपति के निर्देशानुसार विश्वविद्यालय की एक टीम डा. शोभा जावरे के नेतृत्व में गठित की गई। जिसमें डा. देवेंद्र पोधाड़े, डा. माधवी धैर्यकर, डा. मयंक वर्मा ने पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंचकर हथिनी वत्सला का परीक्षण किया।
डा. शोभा जावरे ने बताया कि परीक्षण के बाद हथिनी में डीहाइड्रेशन व टाक्सीमिया की स्थिति पाई गई। पूरे एक दिन तक ड्रिप लगाकर और जीवन रक्षक दवाओं के उपयोग से हथिनी का इलाज किया गया। लगातार एनिमा देने के बाद सक्शन पाइप के माध्यम से करीब साढ़े तेरह किलो का मल पदार्थ रेक्टम के द्वारा बाहर निकाला गया। डा. जावरे के अनुसार हथिनी ने जो घास वगैरह खाई थी उसके कड़े रेशों के कारण ऐसा हो गया था। इस इलाज के बाद हथिनी को पहले से काफी आराम है और अब वह भोजन व पानी ले रही है। डा. जावरे ने बताया कि क्योंकि हथिनी की उम्र अधिक है इसलिए उसके इलाज के दौरान खास सावधानी रखी गई। यही वजह थी कि इस इलाज के लिए असम के हाथी विशेषज्ञ चिकित्सक डा. कुशल कुमार शर्मा व मणिपुर के डा. इंद्रमणि नाथ से भी दूरभाष से संपर्क कर जानकारी ली।
हथिनी के बारे में बताया जाता है कि यह दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी है। अभी तक हाथियों की उम्र करीब 76 वर्ष तक देखी गई है। हथिनी वत्सला को 1971 में केरल से होशंगाबाद लाया गया था। इसके बाद होशंगाबाद से 1993 में पन्ना टाइगर रिजर्व में लाया गया था। वत्सला शुरुआत में थोड़ी गुस्सैल थी लेकिन धीरे-धीरे वह बहुत समझदार और शांत हो गई। जिससे वह सभी की प्रिय है।