गोंड चित्रकार पार्वती के चित्रो से मिलती हैं। आदिवासी ग्राम्य में जीवन की झलक

चित्रों में एक चित्रकार अपनी कल्पनाएं रंगों के माध्यम से कैनवास पर सजाता है, जो सभी के मन को छू जाती हैं। ऐसा ही कुछ गोंड समुदाय की युवा चित्रकार पार्वती परस्ते के चित्रों में देखने को मिला।

मौका था मप्र जनजातीय संग्रहालय की लिखंदरा दीर्घा में लगी चित्र प्रदर्शनी का, जिसका शुभारंभ गुरुवार को हुआ। शलाका-22 प्रदर्शनी में उनके 27 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। सभी चित्र विक्रय हेतु भी हैं, जिन्हे चित्रकार से क्रय किया जा सकता है।

पेंटिंग्स में दिखा ग्रामीण परिवेश

चित्रकार पार्वती के चित्रों में आदिवासी ग्रामीण परिवेश की झलक देखने को मिलती है। चित्रों में खेती, हल चलाता हुआ किसान, सूरज, मंदिर, पानी का कुआं, त्यौहार, पूजा, पेड़, पशु पक्षियों को दर्शाया गया है। पेंटिंग में चटक रंगों के माध्यम से गोंड समुदाय के त्यौहार, विवाह समारोह और पूजा का उल्लेख किया गया है, जो सभी का ध्यान अपनी ओर केंद्रित करते हैं। वहीं पक्षी और पेड़ों के संबंध के बारे में भी बताया गया है। पार्वती का बचपन डिंडोरी जिले के ग्रामीण क्षेत्र में बीता है, इसलिए उनकी चित्रकारी में ग्राम्य जीवन की झलक साफ तौर पर देखी जा सकती है। जनजातीय संग्रहालय में उनकी यह प्रदर्शनी 28 फरवरी तक दोपहर 12 बजे से रात आठ बजे तक देखी जा सकती है।

जनजातीय मिथकों को वरीयता

पार्वती को जनजातीय मिथकों के साथ वन्य जीव जगत को चित्रित करने में अधिक आनंद आता है। उनके इन चित्रों को जनजातीय मिथकों, अनुष्ठानों एवं परम्पराओं का समकालीन सृजन कहा जा सकता है, क्योंकि ये चित्र किसी भी समकालीन चित्रों से कहीं से भी कम नहीं अपितु जनजातीय चेतना का एक कलात्मक उदहारण हैं। पार्वती के चित्रों ने बहुत कम समय में स्वयं के लिए एक स्थान निर्मित किया है। चटक रंगों के साथ ही श्वेत श्याम का संयोजन इनके चित्रों को आकर्षक बनाता है। वर्ष 2012 से पार्वती परस्ते भोपाल, नयी दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु समेत देश भर के विभिन्न शहरों की कला दीर्घाओं में अपने चित्रों का प्रदर्शन कर चुकीं हैं। साथ ही देश भर में आयोजित अनेक शिल्प मेलों, कार्यशालाओं में भी अपनी भागीदारी दर्ज करा चुकी हैं। देश-विदेश के अनेक शासकीय एवं निजी संकलनों में इनके चित्र संग्रहित हैं।

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