उबड़-खाबड़ जमीन। पथरीली सड़कें। टूटी नालियां। जंग लगे बिजली के खंभे। ऐसा मंजर है औद्योगिक केंद्र ताजपुर का। शहर से करीब 15 किमी की दूरी पर एकेवीएन ने ताजपुर औद्योगिक क्षेत्र बनाया। उसे विकसित करने के दावे भी किए लेकिन वे खोखले ही साबित हुए, जमीन पर नहीं उतर सके। उद्योगों के लिए पक्की सड़कें, बिजली ग्रिड, पानी जैसी सुविधाएं महज दिखाने के लिए हैं।
उद्योगपतियों की मानें तो सड़कों की उपरी परत निकल गई है। बिजली ग्रिड होने के बाद भी एक ही ट्रांसफार्मर है। पानी सप्लाई के लिए टंकी बनाई है। उसके साथ ट्रीटमेंट प्लांट भी है लेकिन उससे एक दिन भी पानी सप्लाय नहीं हो पाया। बावजूद इसके हर उद्योगपति से इन्हीं सेवाओं के लिए हर साल करीब 6 हजार रुपए मेंटेनेंस शुल्क वसूला जा रहा है।
औद्योगिक क्षेत्र को विकसित किए करीब पांच साल हो चुके हैं। चार सेक्टर ए, बी, सी, डी में बंटे इस क्षेत्र में 81.04 हेक्टेयर जमीन पर उद्योगों के लिए 178 प्लाॅट हैं। वर्तमान में यहां पर छह उद्योग संचालित हो रहे हैं। दो के लिए भवन निर्माण किया जा रहा है। यहां 800 से 9000 वर्ग मीटर के प्लाॅट हैं।
औद्योगिक क्षेत्र में आटा मिल, ऑक्सीजन जनरेटर, प्लास्टिक दाने, प्लास्टिक टंकी, फेब्रिकेशन और चावल प्रोसेसिंग यूनिट ऐसी 6 इकाइयां संचालित की जा रही हैं। इसके अलावा श्रीजी उद्योग के साथ रिसाइकिल वायर बनाने के लिए दो इकाइयों के काम प्रस्तावित हैं। इनके लिए भवन निर्माण का काम जारी है।
प्लॉट खरीदने से ज्यादा खर्च समतलीकरण में करना पड़ रहा, सुरक्षा के लिए गार्ड है लेकिन नजर नहीं आते
बिजली- पहली इकाई आटा मिल स्थापित करने वाले भूषण जोशी ने बताया 2020 में उन्होंने शुरुआत की। उद्योगों के बीच एक ही ट्रांसफार्मर लगाए गए हैं। सभी की जरूरतें हैं। मैंने जब तार डाले तो लोड बढ़ गया। ऐसे में ठेकेदार के जरिए 7 लाख रुपए अतिरिक्त खर्च कर खुद का ट्रांसफार्मर लगवाया। पूरे क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट लगी है लेकिन 10 फीसदी ही चालू हैं।
पानी- ऑक्सीजन जनरेटर बनाने वाले राहुल गर्ग का कहना है कि एकेवीएन ने पानी की सप्लाय के लिए टंकी बनाई है। उसके साथ ट्रीटमेंट प्लांट भी है। इसे साहिबखेड़ी तालाब से पानी भरने की व्यवस्था है। डेढ़ साल से सुन रहे हैं कि सप्लाय लाइन डाल दी है लेकिन टंकी से एक बार भी पानी नहीं दिया गया। उद्योगपतियों को 650 फीट तक बोरिंग करवाकर पानी का इंतजाम करना पड़ रहा है।
उबड़-खाबड़ जमीन – फेब्रिकेशन प्लांट संचालक गौरव चौहान ने बताया उद्योगपतियों को यहां पर प्लाॅट खरीदने से ज्यादा खर्च उसके समतलीकरण पर करना पड़ रहा है। कई जगह ऐसे हालात हैं कि उद्योगपतियों को मशीन स्थापित करने के लिए 7 से लेकर 8 फीट तक भराव करवाना पड़ता है। उनका कहना है कि इस पर 250 रुपए वर्गफीट खर्च आता है, जो बहुत ज्यादा है।
सुरक्षा- 2021 में नर्मदा कंटेनर नामक प्लास्टिक उद्योग की शुरुआत करने वाले धीरज महाराज कहते हैं कि सुरक्षा के लिए गार्ड है लेकिन हमने उसे कभी देखा नहीं। दिन तो कैसे भी गुजर जाता है लेकिन रात में डर लगा रहता है। पूरा क्षेत्र खुला है। वाहनों की आवाजाही 24 घंटे जारी रहती है। जिन स्थानों पर कोई उद्योग नहीं हैं, वहां की स्ट्रीट लाइट चालू हैं जबकि उद्योग वाले क्षेत्रों की हमेशा बंद रहती है।
समस्या चाहे छोटी हो, इंदौर ही जाना पड़ रहा
उद्योगों से जुड़ी समस्या चाहे छोटी हो या बड़ी, उसका समाधान करवाने के लिए, अफसरों को अवगत करवाने के लिए इंदौर जाना पड़ता है। उद्योगपतियों का कहना है पूर्व में एकेवीएन कार्यालय नानाखेड़ा पर था। तब स्थानीय स्तर पर ही समस्याएं हल हो जाती थी। अब एकेवीएन का कार्यालय इंदौर स्थानांतरित कर दिया है।
विकास जारी, समस्याओं का समाधान कराएंगे
उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए एकेवीएन ने ताजपुर में औद्योगिक केंद्र विकसित किया है। वहां विकास कार्य जारी हैं। उद्योगपतियों ने समस्याओं से अवगत कराया है। इनका समाधान करवाएंगे। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार भी जोर दिया जाएगा।रोहन सक्सेना, प्रभारी, एकेवीए