कोरोना महामारी के दो साल बाद होली के त्योहार की रंगत लौटती नजर आ रही है। शहर में रंगारंग गेर फिर निकालने की तैयारी है।
बीमारी का प्रकोप थमने के बाद लोग होली मनाने के लिए तैयार हैं। इस बीच रंग-गुलाल का कारोबार करने वाले अजीब परेशानी में हैं। थोक बाजार इस साल माल की कमी से जूझ रहा है। इंदौर में रंग-गुलाल और पिचकारियों का बड़ा थोक बाजार है। दो साल से हर बार होली के ठीक पहले कोरोना के मामले बढ़ने से बाजार सुस्त पड़ जाता था। कारोबारियों के अनुसार 2020 और 2021 में न तो होली का उत्साह दिखा, न ठीक से व्यापार हुआ।
बाहर के खेरची विक्रेता जो हर साल इंदौर से माल लेते थे, वे भी दो वर्षों में दूरी बनाते दिखे। इस साल भी फरवरी की शुरुआत तक लोग आशंकित थे कि होली मनेगी या नहीं। कोरोना की लहर का भी डर था। लिहाजा न तो बाजार ने एडवांस बुकिंग में रुचि दिखाई, न पहले से पूछताछ बढ़ी। बीते दिनों मुख्यमंत्री द्वारा होली मनाने की घोषणा, नाइट कर्फ्यू हटाने और गेर की घोषणा के बाद एकाएक बाजार में उत्साह भर गया।
दाम 50 प्रतिशत बढ़े : इंदौर में रंग-पिचकारी के थोक कारोबारी लखन बालचंदानी के अनुसार यहां पिचकारियां दिल्ली, मुंबई और गुजरात से आती हैं। रंग बनाने के कारखाने स्थानीय हैं, लेकिन हर्बल गुलाल व खुशबूदार रंग हाथरस, दिल्ली और छत्तीसगढ़ से भी आया है। अब एकदम मांग निकली है तो निर्माताओं ने दाम बढ़ा दिए हैं। खिलौना निर्माता ही पिचकारियों का उत्पादन करते हैं। उन्होंने कोरोना के डर से कम माल बनाया, लिहाजा पिचकारियों की कीमतें 50 प्रतिशत पहले बढ़ाई थीं।
अब तो दिल्ली-मुंबई में दाम दोगुने तक बताए जा रहे हैं। गुजरात की फैक्ट्रियां माल नहीं दे रहीं। पेट्रोलियम की महंगाई से प्लास्टिक महंगा होने को भी कारण बताया जा रहा है। पानी वाले रंगों की कोई कमी नहीं है इसलिए उनके दामों में खास अंतर नहीं आया लेकिन हर्बल और खुशबूदार गुलाल की कमी है। 48 रुपये किलो वाला गुलाल इस साल 65 रुपये और 76 रुपये किलो के दाम पर थोक में मिलने वाला हर्बल गुलाल 95 रुपये किलो बिक रहा है। थोक बाजार में चार रुपये से 450 रुपये तक की पिचकारी उपलब्ध है।