उज्जैन। सरदार राणोजी राव शिंदे वर्तमान सतारा जिले की तहसील कोरेगांव के कनेरखेड़ के पाटील थे। पाटील गांव का प्रमुख होता है, जिसे दीवानी और फौजदारी की व्यवस्था करनी होती है। पाटील के हाथ के नीचे सहायक कुलकर्णी, चोगला, पोत्दार अधिकारी होते थे। पुलिस व्यवस्था के लिए महार होता था। छत्रपति शिवाजी के समय राणोजी के परिवार में घोड़ों की सिलहेदारी थी। घुड़सवार सैनिक का वर्षों अभ्यास कर एक राणोजी घुड़सवार सैनिक बनाए गए एवं सन् १७०९-१२ के मध्य राणोजी ने छत्रपति शाहू की नई बनाई गई सेना आलमगिर में शामिल हो गए। छत्रपति शाहू का प्रथम विवाह १७०३ में राणोजी के परिवार की लड़की अम्बिकाबाई साहब शिंदे से हुआ। छत्रपति शाहू ने १७-०४-१७२० को बाजीराव प्रथम को मराठा राज्य का पेशवा नियुक्त किया। सन् १७२४ में छत्रपति ने उत्तम सैनिक अभियानों के इनाम स्वरूप राणोजी को सिलहेदार से सरदार बना दिया। मालवा मुहिम में राणोजी ने सन् १७३५ में उज्जैन में अपनी छावनी एवं मुख्यालय बनाया।
राणोजी के उज्जैन प्रवेश पूर्व यहाँ ५०० वर्षों से सुल्तानों एवं मुगलों का मन्दिरों की व्यवस्था में कब्जा था और जीर्ण शीर्ण अवस्था में मन्दिर थे। संध्या नहीं होती थी। लोग घर में पूजा-अर्चना करते थे। मन्दिरों में नगाड़ों की आवाज नहीं आती थी। सिंहस्थ का मेला भी बंद हो चुका था। राणोजी काल में धार्मिक नगरी उज्जैन का उदय हुआ। १७३५ में राणोजी द्वारा ५०० वर्षों तक बन्द पड़े सिंहस्थ कुम्भ मेले को फिर से प्रारम्भ किया।
राणोजी शिंदे ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार किया। उज्जैन के जितने भी मन्दिर एवं महत्व के पूजा स्थल थे, उनका भी जीर्णोद्धार किया। सन् १७३६ से ३८ सेनापति सरदार राणोजी शिंदे ने हरसिद्धि मंदिर की पुन:र्स्थापना की एवं इसी समय मंदिर परिसर में मराठा शैली के खास दीप स्तम्भ बनवाए। सन् १७३७ से ४० में कालभैरव मंदिर का निर्माण कराया, जो कि मराठा स्थापत्यकला का उदाहरण हैं। इसमें भी मराठा शैली के स्तम्भ हैं। सन् १७३७ से ४० में मंगलनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। इसी शृंखला में लाहौर के मुहम्मद शाह अब्दाली को युद्ध में शिकस्त देकर लाए हुए हिन्दु शान्ति विजय का प्रतीक चांदी के द्वार जिन्हें बाद में महारानी बाजवाबाई साहब ने उज्जैन स्थित गोपाल मंदिर में स्थापित कराया था। जब भी हम उज्जैन के गौरव की बात करते हैं तो मराठा सरदारों का नाम सर्वप्रथम याद किया जाता है।