देश में एक समान तिथि, वार, त्योहार मनाने के लिए बनेगा नेशनल कैलेंडर, देशभर के 300 विद्वान 2 दिन उज्जैन में करेंगे मंथन

देशभर में एक समान तिथि, वार, त्योहार तय करने के लिए केंद्र सरकार की पहल पर नेशनल कैलेंडर तय किया जाएगा। इसके लिए उज्जैन में दो दिन देशभर के ज्योतिषी, पंचांगकर्ता और खगोल विज्ञान से जुड़े विद्वान जुटेंगे। इसका फायदा यह होगा कि विभिन्न अंचलों से पंचांगों के कारण व्रत-त्योहार, तिथि आदि को लेकर उत्पन्न होने वाले भेद समाप्त होंगे। इसके अलावा देश में अंग्रेजी कैलेंडर की जगह भारतीय कैलेंडर को मान्यता मिलेगी।

भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका (नेशनल कैलेंडर ऑफ इंडिया) को लेकर विक्रम विश्वविद्यालय में 22-23 अप्रैल को दो दिन देशभर के विद्वानों की राष्ट्रीय संगोष्ठी और पंचांगों की प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ के परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने यह पहल की है।

इस आयोजन में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, केंद्रीय विज्ञान प्रोद्योगिकी विभाग, विज्ञान प्रसार, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान, खगोल विज्ञान केंद्र, विज्ञान भारती, धारा, मप्र विज्ञान-प्रोद्योगिकी परिषद, विक्रम विश्वविद्यालय व पाणिनी संस्कृत विवि उज्जैन भागीदार हैं। पाणिनी संस्कृत विवि के रजिस्ट्रार डॉ दिलीप सोनी के अनुसार 1952 में देश में यूनिफार्म कैलेंडर के लिए कैलेंडर रिफॉर्म कमेटी गठित की गई थी।

इस कमेटी की अनुशंसा पर 1956 में नेशनल कैलेंडर के लिए प्रयास हुए थे। लेकिन बाद में मामला आगे नहीं बढ़ा। हाल ही में केंद्र सरकार ने फिर से इसकी पहल शुरू की है। अभी जिस अंग्रेजी कैलेंडर को माना जाता है, उस कैलेंडर के दिन, महीने, वर्ष आदि को लेकर कोई प्रामाणिक मान्यता नहीं है। जबकि भारतीय कैलेंडर (पंचांग) खगोल पर आधारित है, जैसे महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं।

ग्रहों के आधार पर ही दिन, तिथि, वार, त्योहार आदि तय होते हैं। इसलिए देश में भारतीय कैलेंडर ज्यादा प्रासंगिक है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले देश के महानगरों कोलकाता, जम्मू, पुणे आदि में कर्टन रेजर कार्यक्रम भी होंगे, जहां भारतीय कैलेंडर को लेकर नागरिकों को जानकारी दी जाएगी।

उज्जैन कालगणना का प्राचीन केंद्र

उज्जैन कालगणना का प्राचीन केंद्र रहा है। उज्जैन की कालगणना को ही विश्व में मान्यता थी। उज्जैन कर्क रेखा पर स्थित है। इसलिए समय की गणना यहां सबसे ज्यादा शुद्ध होती है। इसलिए उज्जैन में राजा जयसिंह ने वेधशाला स्थापित की थी। इसके बाद पुराविद् डॉ विश्री वाकणकर द्वारा कर्क रेखा की दोबार खोज किए जाने के बाद महिदपुर तहसील के डोंगला में नई वेधशाला बनाई गई है, जहां खगोल को लेकर अत्याधुनिक उपकरण व अंतरराष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी आदि के लिए सभागृह आदि उपलब्ध हैं।

भागीदारी के लिए ऑनलाइन पंजीयन शुरू

डॉ सोनी के अनुसार इस संगोष्ठी में नेशनल कैलेंडर तय किया जाएगा। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार के संबंधित मंत्रालयों, राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न संस्थाओं के 100 प्रतिनिधि तथा 200 ज्योतिष, पंचांगकर्ता व खगोल विज्ञान के विद्वान शामिल होंगे। इनका ऑनलाइन पंजीयन किया जा रहा है। पंचांगों के तथ्यों पर मंथन कर नेशनल कैलेंडर बनाया जाएगा।

प्रभातफेरी, प्रदर्शनी और डोंगला का भ्रमण

सभी आयोजन विक्रम विश्व विद्यालय परिसर में होंगे। परिसर में 21 अप्रैल को देशभर में प्रचलित पंचांगों की प्रदर्शनी लगेगी। इस प्रदर्शनी का नागरिकों और स्कूली बच्चों को भ्रमण कराया जाएगा। उन्हें भारतीय पंचांग की जानकारी दी जाएगी। उज्जैन की कालगणना कैसे लुप्त हुई और इसे फिर से क्यों स्थापित करना चाहिए।

इस बारे में विद्वानों द्वारा समझाइश दी जाएगी। संगोष्ठी विक्रम कीर्ति मंदिर में होंगी। 22 अप्रैल की शाम को विद्वानों को डोंगला वेधशाला का भ्रमण कराया जाएगा। यहां खगोल अध्ययन की सुविधाओं की जानकारी दी जाएगी। शुभारंभ पर प्रभातफेरी निकलेगी।

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