नई दिल्ली / केंद्र सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल को बढ़ाने के अपने फैसले का बचाव किया है और कहा है कि इसे चुनौती देने वाली याचिका ‘प्रेरित’ है।
इसके साथ ही केंद्र ने शीर्ष अदालत से याचिका खारिज करने का आग्रह किया है।
मालूम हो कि ईडी निदेशक के सेवा विस्तार को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे पर केंद्र सरकार ने दलील दी है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ईडी कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली याचिका आधारहीन है और शीर्ष अदालत से इसे खारिज करने का आग्रह किया। केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि याचिका स्पष्ट रूप से किसी जनहित याचिका के बजाय एक अप्रत्यक्ष व्यक्तिगत हित से प्रेरित है।
केंद्र सरकार ने कहा कि याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 का दुरुपयोग है, जो स्पष्ट रूप से कांग्रेस अध्यक्ष और कांग्रेस के पदाधिकारियों के लिए और उनकी ओर से एक प्रतिनिधि क्षमता में दायर की जा रही है, जिसकी ईडी द्वारा जांच की जा रही है।
केंद्र ने कहा कि याचिका राजनीतिक कारणों से दायर की गई है, जब संबंधित व्यक्तियों को किसी भी उचित राहत के लिए सक्षम अदालत का दरवाजा खटखटाने से रोका नहीं जा रहा है। केंद्र ने बताया कि वर्तमान रिट याचिका, जिसे जनहित याचिका का रूप दिया जा रहा है, वह स्पष्ट रूप से प्रेरित है और इसका उद्देश्य कुछ राजनीतिक रूप से उजागर व्यक्तियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही वैधानिक जांच को रोकना है।
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केंद्र सरकार ने कहा कि याचिका का असली मकसद कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी के कुछ पदाधिकारियों के खिलाफ की जा रही जांच पर सवाल उठाना है। केंद्र ने प्रस्तुत किया कि यह एक सर्वविदित तथ्य है कि भ्रष्टाचार, काला धन और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अपराध और ड्रग्स, आतंकवाद और अन्य आपराधिक अपराधों के साथ इसके जटिल संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा और हमारी वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
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केंद्र ने कहा, ‘भ्रष्टाचार का साया कई बार उन व्यवस्थाओं में लोगों के विश्वास को पूरी तरह से खत्म कर देता है, जो उन्हें सुशासन प्रदान करने के लिए होती हैं। इसलिए भ्रष्टाचार से प्रभावी ढंग से निपटना लोगों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति और संस्थानों और शासन में उनके विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।’
केंद्र सरकार ने कहा कि यह प्रस्तुत किया जाता है कि उपरोक्त राजनीतिक दलों के कुछ नेता निदेशालय की जांच के अधीन हैं। जांच सख्ती से कानून के अनुसार चल रही है जो इस तथ्य से परिलक्षित होती है कि ज्यादातर मामलों में या तो सक्षम न्यायालयों ने अपराध का संज्ञान या संवैधानिक न्यायालयों ने उपरोक्त राजनीतिक दलों के ऐसे नेताओं को कोई राहत देने से इनकार कर दिया है।