दम तोड़ते हुए मां बोली- मेरे बच्चों को बचा लेना…:प्रीमैच्योर डिलीवरी टाइम 490 ग्राम के थे जुड़वां, 100 दिन में 2 किलो वजन हुआ

मुझे नहीं, मेरे बच्चों को बचा लीजिए…। यह आखिरी शब्द मां दीप्ति परमार के हैं। मां नहीं रही, लेकिन 100 दिन के संघर्ष के बाद दोनों बच्चों को बचा लिया गया। प्रीमैच्योर डिलीवरी के टाइम जुड़वां बच्चों का वजन 490 ग्राम था। 35 दिन दोनों को ICU में रखा गया। 100वें दिन शनिवार को इनका वजन दो-दो किलो होने के साथ ही पूरी तरह स्वस्थ होने पर डॉक्टरों ने इन्हें डिस्चार्ज कर दिया। डॉक्टरों का दावा है कि प्रदेश में ऐसा पहला केस है।

प्रेग्नेंसी के दौरान दीप्ति को लिवर और किडनी संबंधी कॉम्प्लीकेशंस हुए थे। मल्टी ऑर्गन फेल्योर होने की नौबत बन गई थी। इसकी बड़ी वजह उनका किडनी ट्रांसप्लांट होना था। ऐसे में उन्होंने हिम्मत से काम लिया। 14 नवंबर 2022 को प्रीमैच्योर डिलीवरी में उन्होंने 24 हफ्ते के जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। प्रेग्नेंसी के दौरान दीप्ति को पीलिया भी हो गया था। डॉक्टर्स के पास बच्चों या मां को बचाने का ही ऑप्शन था। बच्चों के जन्म के 19 दिन बाद वह संसार से विदा हो गई।

दीप्ति के पति शैलेंद्र परमार ने बताया, आठ साल पहले दीप्ति का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उनकी मां ने किडनी दी थी। ठीक होने के बाद प्रेग्नेंसी प्लान की। प्रेग्नेंसी के दौरान दीप्ति की हालत खराब होने लगी, तब जाकर पता चला कि उन्हें पीलिया भी है। इसके चलते बच्चों की प्रीमैच्योर डिलीवरी की गई। दीप्ति जानी-मानी क्लासिकल सिंगर थी। दीप्ति ने संगीत में पीएचडी की थी। वे संगीत महाविद्यालय में उपप्राचार्य थीं।

पति शैलेंद्र परमार के साथ दीप्ति। दीप्ति जानी-मानी क्लासिकल सिंगर थी।
पति शैलेंद्र परमार के साथ दीप्ति। दीप्ति जानी-मानी क्लासिकल सिंगर थी।

बच्चों के ऑर्गन पूरी तरह विकसित नहीं हुए थे
बच्चों को प्रोफेसर कॉलोनी इलाके के अग्रवाल बॉम्बे चिल्ड्रन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. राहुल अग्रवाल ने बताया कि जन्म के समय लविक और लवीश नाम के बच्चों का वजन सिर्फ 410 ग्राम था। फेफड़े, ब्रेन और आंतें भी पूरी तरह विकसित नहीं हुए थे। 10 दिन तक दोनों बच्चे बंसल हॉस्पिटल में रहे। इस दौरान उनका वजन घटता गया। इसके बाद बॉम्बे चिल्ड्रन हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया। यहां लविक 32 और लवीश 35 दिन तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहा। इस दौरान कई बार उनकी सेहत बिगड़ी। 100 दिन तक चले इलाज के बाद अब बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं। शनिवार को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। दोनों बच्चों का वजन भी दो-दो किलोग्राम हो गया है। बच्चे अब चार महीने के हो गए हैं।

बच्चे जब पूरी तरह स्वस्थ होकर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुए तो पिता शैलेंद्र भावुक हो गए।
बच्चे जब पूरी तरह स्वस्थ होकर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुए तो पिता शैलेंद्र भावुक हो गए।

दूसरे नवजात बच्चों की मां का दूध पिलाया
शुरू से ही बच्चों को अपनी मां का दूध नहीं मिला। ऐसे में बच्चों को फीड कराने के लिए मदर मिल्क, अस्पताल में भर्ती दूसरे नवजात बच्चों की मांओं ने दूध पिलाया। डॉ. राहुल अग्रवाल ने बताया कि बच्चों को इंफेक्शन से भी बचाना था, क्योंकि इतने छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इनकी लेजर थैरेपी भी की गई, क्योंकि आमतौर पर इतने छोटे बच्चों के साथ लंग्स और रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी जैसी दिक्कत का सामना भी करना पड़ता है।

दावा- प्रदेश का पहला मामला
डॉ. राहुल ​​अग्रवाल ने बताया कि 26 हफ्ते से कम प्रेग्नेंसी में नवजात को बचाना संभव नहीं होता। ऐसे करीब 20-21 बच्चे ही हैं, जो बच पाए हैं। उनका दावा है कि यह प्रदेश का पहला और देश का दूसरा मामला है, जिसमें 24 हफ्ते के जुड़वां बच्चों को बचाया गया। इससे पहले अमेरिका में 22 हफ्ते 1 दिन के बच्चे को बचाया गया था। फिर ऐसा मामला भारत में 23 हफ्ते 3 दिन का है।

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