माचिस की डिबिया की कीमत हुई दोगुना, 15 साल बाद बढ़े दाम

हर घर में नजर आने वाली माचिस पर भी अब महंगाई की मार पड़ रही है। माचिस के दाम दोगुने कर दिए गए हैं। इंदौर के बाजार में थोक कारोबारियों ने चार जनवरी से दाम बढ़ाने की घोषणा की।

नए दाम लिखा माल सोमवार से बाजार में पहुंचना शुरू हुआ। इसी के साथ अब तक आम उपभोक्ताओं को एक रुपये में मिलने वाली माचिस की डिबिया की कीमत दो रुपये हो गई। अहम बात ये कि 15 साल बाद माचिस के दामों में बढ़ोतरी हुई है।

दिसंबर के आखिर में आंध्र प्रदेश के शिवाकाशी की माचिस फैक्ट्रियों की ओर से कीमतों में वृद्धि की घोषणा की गई थी। इसके बाद स्थानीय थोक विक्रेता व डिस्ट्रीब्यूटर्स ने चार जनवरी से दामों में वृद्धि का ऐलान किया था। हालांकि इस बीच बाजार में पुराने दौर का स्टाक था जो पुराने दाम पर ही बिकता रहा। सोमवार-मंगलवार से बाजार में नया माल दक्षिण भारत से आने लगा और बढ़ी हुई कीमतों पर माचिस की बिक्री शुरू कर दी गई। माचिस के डिस्ट्रीब्यूटर अमृतलाल हंसराज के अंकित तुरखिया के मुताबिक हर ब्रांड की माचिस ने दाम वृद्धि लागू कर दी है। लकड़ी से लेकर फास्फोरस, सल्फर व तमाम रसायनों के साथ लैबर और परिवहन की लागत बढ़ने को इसकी वजह बताया जा रहा है।

अब तक थोक में माचिस की पेटी के दाम करीब 485 रुपये था। 600 डिबिया वाली इस पैटी की कीमत थोक में 650 रुपये हो गई है। यानी थोक में ही विक्रेता को माचिस की एक डिबिया एक रुपये से ज्यादा में मिलेगी वह अपने मार्जिन के साथ इसे उपभोक्ता को दो रुपये में बेचेगा। हैरानी की बात है कि भले ही हम आम और खास व अमीर से लेकर गरीब तक माचिस का उपयोग करे लेकिन जीएसटी में माचिस को आवश्यक वस्तुओं वाले टैक्स स्लैब में नहीं रखा गया। कमर्शियल टैक्स प्रेक्टिशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष केदार हेड़ा के अनुसार आटा-तेल-दाल जैसी वस्तुएं शून्य या पांच प्रतिशत कर के दायरे में रखी गई हैं। माचिस को 12 प्रतिशत टैक्स स्लैब में रखा गया है।

चार करोड़ माचिस हर महीने

माचिस डिस्ट्रीब्यूटर अंकित तुरखिया के अनुसार इंदौर के बाजार से हर महीने करीब चार करोड़ माचिस की डिबिया बिकती है। दिवाली जैसे खास त्यौहार के समय माचिस की बिक्री 15 से 25 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। महंगाई के असर से निपटने के लिए अब तक माचिस निर्माता कंपनियां कीमतें बढ़ाने की बजाय दूसरे जतन कर रही थी। माचिस की एक डिबिया में 50 से 60 तिलियां होती है। दिवाली के समय ही कुछ निर्माताओं ने कीमतें बढ़ाने की बजाय डिबिया में तिलियों की संख्या 30 से 40 कर दी थी। अब आखिरकार दाम बढ़ाने की घोषणा कर दी गई है।

पांच पैसे से दो रुपये तक का सफर

– 1950 में माचिस की एक डिबिया का मूल्य 5 पैसे था

– 1960 में माचिस की कीमत 10 पैसे हुई

– 1970 में दाम बढ़ाकर 15 पैसे किए गए

– 1980 में 25 पैसे हुए दाम

– 1994 में माचिस का मूल्य 50 पैसे किया गया

– 2007 में माचिस की कीमत एक रुपये हुई

– 2022 में बाजार में दाम बढ़कर दो रुपये हुए

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