दवाओं के कच्चे माल पर होगा क्यूआर कोड अनिवार्य, निर्मित दबाव पर भी लागू करने की मांग

दवाओं के कच्चे माल (एपीआइ) पर अब क्यूआर कोड अनिवार्य तौर पर छापा जाएगा। केंद्र सरकार ने इस बारे में अधिसूचना जारी कर दी है। इस नियम के प्रभाव से नकली दवाओं के निर्माण और अमानक कच्चे माल की आपूर्ति पर अंकुश लगने की उम्मीद की जा रही है।

ताजा नियम से दवा निर्माता राहत महसूस कर रहे हैं। इस बीच मांग उठी है कि क्यूआर कोड के नियम को निर्मित दवाओं पर भी अनिवार्य रूप से लागू कर दिया जाए।यदि निर्मित दवाओं पर नियम लागू हुआ तो उपभोक्ता कुछ सेकंड में अपने मोबाइल से असली-नकली दवाओं की पहचान कर सकेंगे।

बेसिक ड्रग डीलर्स एसोसिएशन मप्र ने करीब डेढ़ साल पहले सरकार से मांग की थी कि दवा के कच्चे माल पर क्यू आर को़ड लागू होना चाहिए। दरअसल दवाओं का कच्चा माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआइ) काफी महंगा होता है। देश में ज्यादातर एपीआइ चीन जैसे देशों से आयात हो रहा है। प्रदेश की छोटी-मध्यम दवा निर्माता कंपनियां और सप्लायर के बीच एपीआइ को लेकर बीते दिनों से काफी विवाद सामने आ रहे थे। इस बीच नकली एपीआइ बनाने वाले और मिलावटखोर भी इसका फायदा उठाने लगे थे।एपीआइ निर्माता माल डिस्ट्री्ब्यूटर को भेजते हैं और वहां से कंपनियों में दवा निर्माण के लिए जाता है।

दवा निर्माण के पहले संबंधित कंपनी उस एपीआइ को टेस्ट करती है। ऐसे टेस्ट में कई बार एपीआइ फेल हो जाता है। ऐसे तमाम मामलों में ज्यादातर मौकों पर एपीआइ निर्माता हाथ खड़े कर देते हैं कि रास्ते में या ट्रांसपोर्टेशन के दौरान कच्चे माल को बदला गया। अब क्यूआर कोड सभी कच्चे माल की सील पर छपा होगा। इस क्यू आर कोड में 11 तरह की जानकारी होगी। एपीआइ के नाम, प्रकृति से लेकर बैच, निर्माण तिथि, कंपनी का नाम, स्टोरेज की स्थिति व अवसान तिथी जैसी जानकारी सामग्री की सील पर छपे कोड को स्कैन कर जानी जा सकेगी।ऐसे में दवा इकाइयां भी आश्वस्त रहेगी कि सही माल उन तक पहुंचा है।

टेस्ट में माल फेल होने पर वे कंपनी पर क्लेम भी कर सकेंगी। इसका बड़ा असर नकली दवा बनाने वालों और बिना बिल के एपीआइ सप्लाय करने वालों पर भी पड़ेगा। बिना क्यूआर कोड के एपीआइ सप्लाय नहीं हो सकेगा तो ऐसे में अवैध आपूर्ति भी रुक सकेगी।

निर्मित दवाओं पर भी

बेसिक ड्रग डीलर्स एसोसिएशन मप्र के महासचिव जेपी मूलचंदानी के अनुसार अगले साल एक जनवरी से एपीआइ पर क्यूआर कोड का नियम लागू होगा। इससे दवा निर्माण करने वाली असल इकाइयों को कारोबारी राहत मिलेगी और गुणवत्ता बेहतर तरीके से निर्धारित होगी। नकली दवाओं का कारोबार रुकेगा। हम अब मांग कर रहे हैं कि निर्मित दवाओं पर भी क्यूआर कोड छापा जाए। इससे होगा यह कि खरीदार कोड स्कैन कर जान सकेगा कि दवा असली है या नहीं। मल्टीनेशनल कंपनियां स्वेच्छा से कोड छाप रही हैं।

भारत से निर्यात होने वाली दवाओं पर भी कोड छापना अनिवार्य है। यदि सरकार इस नियम को देश के भीतर अनिवार्य रूप से निर्मित दवाओं पर भी लागू कर दे तो नकली दवा की बिक्री न केवल रुकेगी बल्कि ऐसी खेप को पकड़ना भी आसान हो जाएगा।

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