आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत इस बार का राष्ट्रीय पर्यटन दिवस भी इसी थीम के साथ मनाया जा रहा है। जब बात देश की आजादी की हो तो शहर में उस वक्त हुए घटनाक्रमों और उनमें वर्तमान पर्यटन स्थलों की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता।
बात अलग है कि 1939 में तिलवारा में हुए त्रिपुरी अधिवेशन के साक्षी त्रिपुरी स्मारक, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की सभा का आयोजन स्थल तिलक भूमि की तलैया वर्तमान में पर्यटन स्थलों में शामिल न हों लेकिन इन स्थलों का आजादी की गाथा में एैतिहसिक महत्व रहा है। जहां तक बात आज के पर्यटन स्थलों की है तो मदन महल की पहाडियों पर दिल्ली हमले का अभ्यास हुआ था तो वहीं भेड़ाघाट के सौंदर्य को देखने महात्मां गांधी भी शहर आए थे।
इतिहासविद डा. आनंद सिंह राणा ने बताया कि इतिहास में महात्मा गांधी के चार बार शहर आगमन की जानकारी मिलती है। इन्हीं यात्राओं में से तीसरी यात्रा 27 फरवरी 1941 की है। जब आजादी प्राप्ति को लेकर शुरू किए जाने वाले आंदोलनों को लेकर एक चर्चा करने गांधी जी शहर आए। इस एक दिवसीय यात्रा में गांधी जी बल्देवबाग स्थित हीरजी गोविंद जी संस्था में ठहरे थे। जहां उन्होंने द्वारका प्रसाद मिश्र, सेठ गोविंददास, ब्योहार राजेंद्र सिंह, लक्ष्मण सिंह, सुभद्रा कुमारी चौहान व अन्य सेनानियों के साथ चर्चा की थी। इसके बाद गांधी जी भेड़ाघाट गए थे। जिसके पीछे उद्देश्य वहां की प्राकृतिक सुंदरता देखना तो था ही साथ ही नर्मदा दर्शन करके आध्याति्मक शांति का अनुभव करना भी था। महात्मा गांधी की भेड़ाघाट यात्रा का उल्लेख जबलपुर अतीत दर्शन, जबलपुर गजेटियर, जगमोहनदास स्मृति ग्रंथ व अन्य पुस्तकों में भी मिलता है।
इसके साथ ही आजादी की गाथा का एक अभिन्न हिस्सा है दिल्ली हमला। कहने के लिए तो यह हमला दिल्ली में होना था लेकिन इसकी योजना को लेकर सारी तैयारियां व अभ्यास मदन की पहाडियों पर किया गया। दिल्ली हमला तत्कालीन वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर हमला करना अंग्रेजों को जड़ से हिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।