उमरिया के ज्वालामुखी क्षेत्र में नदी पार करके मुक्तिधाम तक अर्थी ले जाई जाती हैं। अर्थी ले जाते समय लोगों को काफी संभालना पड़ता है, क्योंकि नदी में कमर से ऊपर तक पानी है।
पानी के कारण खतरा बना रहता है, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए अर्थी को मुक्तिधाम तक ले जाने की मजबूरी की वजह से इस खतरे को लोग नजरअंदाज कर देते हैं।
हो चुकी है मांग: ऐसा नहीं है कि इस नदी पर पुल बनाने की मांग लोगों ने नहीं की और प्रशासन ने आश्वासन नहीं दिया। लेकिन मांग और आश्वासन के बावजूद आज तक इस नदी पर श्मशान घाट के पास पुल का निर्माण नहीं किया गया। यही कारण है कि लोगों को मजबूरी में नदी पार करके अर्थियां मुक्तिधाम तक ले जानी पड़ती है।
सालों से हो रहा है अंतिम संस्कार: उमरिया के ज्वालामुखी क्षेत्र में उमरार नदी के दूसरी तरफ 100 साल से ज्यादा समय से अंतिम संस्कार होता आ रहा है। यहां की यह पुराना मुक्तिधाम है। पुराने जमाने से यहां रह रहे लोगों का इससे मुक्तिधाम के प्रति इसलिए श्रद्धा बनी हुई है क्योंकि उनके बुजुर्गों का अंतिम संस्कार भी इसी मुक्तिधाम पर हुआ। यही कारण है कि लोग नदी पार करके इस मुक्तिधाम तक अर्थियां ले जाते हैं।
चलना पड़ता है संभल के: ज्वालामुखी क्षेत्र के उमरार नदी के घाट को जवारा घाट भी कहा जाता है। क्योंकि यही नवरात्रि के जवारा विसर्जन होते हैं। पास में ही ज्वालामुखी माता का मंदिर है जहां नवरात्रि में बोय जाने वाले जवारा इसी घाट में विसर्जित किए जाते हैं। इस नदी को पार करने के बाद आगे श्मशान भूमि है जहां तक जाने के लिए लोगों को नदी में उतरना पड़ता है और काफी संभल संभल कर चल कर नदी पार करनी पड़ती है। कांधे पर अर्थी हो तो नदी के अंदर चलना कितना मुश्किल होता होगा इसका अनुमान इस क्षेत्र के लोगों ही लगा सकते हैं।
पुलिया का मिला आश्वासन: ज्वारा घाट में पुलिया निर्माण के लिए कई बार कलेक्टर और विधायक ने आश्वासन दिया लेकिन आज तक पुलिया का निर्माण यहां नहीं हो पाया। न जाने क्यों इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि यह बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। भले ही उस पुलिया का इस्तेमाल हफ्ते महीने में हो लेकिन दूसरी तरफ श्मशान भूमि होने की वजह से यह पुलिया का क्या महत्व है यह तो स्थानीय लोग ही बता सकते हैं।