कथा के के सातवें दिन श्री बांकेबिहारीजी महाराज ने श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन किया गया।


रिपोर्ट-दुर्गाशंकर टेलर जिला आगर-मालवा

आगर -मालवा :- कथा वाचक बांकेबिहारीजी महाराज ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा के मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे।”पानी परात को हाथ छूवो नाही,नैनन के जल से पग धोये।”योगेश्वर श्री कृष्ण अपने बाल सखा सुदामा जी की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रो से सुदामा जी का हाल चाल पूछने लगे। उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में धन दौलत आड़े नहीं आती।महाराज ने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ‘स्व दामा यस्य स: सुदामा’ अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। मौके पर श्रद्धालुओं ने ध्यान पूर्वक कथा का श्रवण किया।भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे।उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की कथा के दौरान बीच बीच में मण्डली द्वारा भजन की प्रस्तुति की गई।श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र की कथा सुनकर एवं कृष्ण एवं सुदामा के मिलन की झांकी का दृष्य देख पण्डाल में मौजूद समस्त भक्तगण भाव विभोर हो गये। अद्भुत झांकी ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया और एक स्वर में राधे- कृष्ण के जयकारों से पण्डाल गुंजायमान हो उठा। ने सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा कि मनुश्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करे क्यों कि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौडे चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुश्य तनाव में जीता है जब कि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोशी बन जाओ। संतोश सबसे बडा धन है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी उन्होने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की।लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गये चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सबकुछ प्रदान कर दिया। जैसे ही कथा पंण्डाल में भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा के मिलन का सजीव चित्रण करती हुर्इ झांकी प्रस्तुत की गयी तो पूरा पण्डाल भाव विभोर हो गया और लोग भगवान श्री कृष्ण की जय-जय कार करने लगे।

श्रद्धालुओं द्वारा किए जा रहे धार्मिक उदघोष से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया था। कथा जैसे जैसे विराम की ओर बढ़ रही थी आयोजकों का उत्साह बढ़ता उतना ही जा रहा था।

उन्होंने श्रोताओं से कहा की नियमित सात दिन तक कथा सुनने से जन्म जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है। सप्ताह भर की कथा का सारांश में प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग बाकी दिन की कथा नहीं सुन पाए हैं उन्हें इस कथा का श्रवण करने से पूरी कथा सुनने का पुण्य लाभ प्राप्त हो सकता है। भागवत कथा के समापन पर गद्दी सेवकों ने बुराइयों का त्याग करने का संकल्प लिया। ने गुरु भक्ति की कथा बताई। महाराज ने कहा कि पापों का नाश करने के लिए भगवान धरती पर अवतार लेते हैं। धरती पर आने के बाद भगवान भी गुरु की भक्ति करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चे गुरु के आशीर्वाद से जीवन धन्य हो जाता कलयुग में माता-पिता और गुरु भक्ति करने से पापों का नाश होता है। जब सत्संग में जाएं तो सिर्फ कान न खोलें बल्कि आंख भी खोल कर रखें। मनुष्य को आत्मचिंतन और आत्म साक्षात्कार की आवश्यकता है। कथा केवल सुनने के लिए नहीं है बल्कि इसे अपने जीवन में उतारें इसका अनुसरण करें। भगवत भजन करने से स्वयं तो आत्मविश्वासी होता ही है, दूसरों में भी विश्वास जगता है। आत्मविश्वास में कमी आने पर हम हर प्रकार से संपन्न होते हुए भी हमें कार्य की सफलता पर संशय रहता है।समापन के अवसर पर उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि प्रतिदिन माता-पिता का आदर करें, सूर्य को अर्घ्य अर्पण करें, भगवान को भोग लगाएं, गाय को रोटी दें और अपने आत्मविश्वास को हमेशा कायम रखें। अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा अच्छे कार्यों के लिए अवश्य निकालें। उन्होंने अंतिम श्लोक के साथ कथा को विराम दिया महाआरती कर भागवत की सोभा यात्रा निकाली प्रसाद वितरण किया साथ ही विवेकानंद नगर निज निवास प्रभा वंदन पर श्री ब्रजलाल प्रभादेवी जी शर्मा की स्मृति में वंदना शर्मा ने भागवत कथा आयोजन करवाया

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