उज्जैन। कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली द्वारा आयोजित स्वच्छता पखवाड़ा के अंतर्गत जन शिक्षण संस्थान उज्जैन ने संस्थान की निदेशक अनिता सक्सेना के निर्देशन में शा.उ.मा.वि. दौलतगंज उज्जैन में जल प्रंबधन एवं खाद निर्माण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में निलीमा दुबे प्रिंसीपल उपस्थित थी। इनके द्वारा जल प्रबंधन एवं खाद निर्माण के महत्व को समझाते हुये बताया गया कि जल, मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह न केवल ग्रामीण और शहरी समुदायों की स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है बल्कि कृषि के सभी रूपों और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी आवश्यक है। परंतु विशेषज्ञों ने सदैव ही जल को उन प्रमुख संसाधनों में शामिल किया है जिन्हें भविष्य में प्रबंधित करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत एक गंभीर जल संकट के कगार पर है। मौजूदा जल संसाधन संकट में हैं, देश की नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र बिगड़ रहे हैं और भूजल स्तर लगातार घट रहा है। इन सभी के बावजूद जल संकट और उसके प्रबंधन का विषय भारत में आम जनता की चर्चाओं में स्थान नहीं पा सका है। जैविक खेती जीवों के सहयोग से की जाने वाली खेती के तरीके को कहते हैं। प्रकृति ने स्वयं संचालन के लिये जीवों का विकास किया है जो प्रकृति को पुन: ऊर्जा प्रदान करने वाले जैव संयंत्र भी हैं। यही जैविक व्यवस्था खेतों में कार्य करती है। खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने को हैं तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा। इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी। कम्पोस्ट बनाने का सबसे सरल तरीका है- नम जैव पदार्थों (जैसे पत्तियाँ, बचा-खुचा खाना आदि) का ढेर घर पर बनाकर कुछ काल तक प्रतीक्षा करना ताकि इसका विघटन हो जाये और खाद बन जाये। संचालन सहा. कार्यक्रम अधिकारी दिलीप सिंह चावड़ा द्वारा किया गया। कार्यशाला में जे.एस.एस. स्टाफ एवं 40 छात्र उपस्थित थे।