विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के आँगन में सोमवार को दीपावली पर्व मनाया जाएगा। रूप चौदस व अमावस्या एक ही दिन होने के चलते रूप चौदस को उबटन स्नान भी पुजारी परिवार की और से इसी दिन होगा। इसके बाद अन्नकूट लगाकर भस्म आरती के दौरान पण्डे पुजारी गर्भगृह में फुलझड़ी के साथ साथ कोटि तीर्थ पर प्रतीकात्मक फटाखे छोड़कर दीपावली पर्व मनाएंगे। भस्म आरती के दौरान सबसे पहले महाकाल को पंचामृत स्नान कराने के बाद रूप चतुर्दशी पर पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान को केसर चंदन इत्र का उबटन लगाएंगी। पुजारी भगवान को गर्म जल से स्नान कराएंगे। कर्पूर से आरती होगी। साल में एक दिन रूप चतुर्दशी पर पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान का रूप निखारने के लिए उबटन लगाकर कर्पूर आरती करती हैं। स्नान के बाद महाकाल को नए वस्त्र, आभूषण धारण कराकर आकर्षक श्रृंगार किया जाएगा। इसके बाद अन्नकूट भोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी।
दीपावली पर अन्नकूट भी
महाकाल का श्रृंगार के बाद फुलझड़ी के साथ परम्परा का निर्वहन करते हुए पण्डे पुजारी भगवान माहाकाल के साथ दीपावली का पर्व मनाएंगे। अन्न कूट में भगवान को धान,खाजा,शक्कर पारे, गूंजे ,पपड़ी मिठाई सहित भोग की थाली में खासा मूली की सब्जी का भोग,बैगन की सब्जी भी भोग के रूप अर्पित की जाएगी। महेश पुजारी ने बताया कि भगवान महाकाल मृत्युलोक के राजा माने जाते हैं। इसलिए देश में होली, दिवाली या कोई भी त्योहार सबसे पहले यहीं सूर्योदय से पहले भस्मारती में मनाया जाता है। इसके बाद लोग पर्व मनाते हैं।