कम उम्र के हार्ट पेशेंट को अब ऐसे स्टेंट लगाए जा रहे, जो कुछ समय बाद शरीर में ही डिजॉल्व हो जाते हैं। यानी ऑपरेशन के कुछ समय बाद शरीर में गायब हो जाता है। मेटल के स्टेंट में मरीज को खून पतला करने की दवाइयां आजीवन लेना पड़ती हैं, जबकि इसमें तीन साल बाद दवा खाने की जरूरत नहीं रहती। अब डॉक्टर वेनिशिंग स्टेंट का ऑप्शन मरीजों को दे रहे हैं। मरीजों में इसके प्रति रुझान भी बढ़ा है।
वीमेन इन कॉर्डियोलॉजी एंड रिलेटेड साइंसेज (विनकार्स) एसोसिएशन के राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार को विशेषज्ञों ने यह बात कही। महिला कॉर्डियोलॉजिस्टों ने लाइव केस बताया। अपोलो हॉस्पिटल इंदौर में डॉ. सरिता राव और डॉ. ज्योत्सना ने लाइव केस ट्रांसमिशन के दौरान 46 वर्षीय मरीज में वेनिशिंग स्टेंट लगाकर बताया। डॉ. राव ने डिजॉल्व होने वाले स्टेंट की लाइव सर्जरी करते हुए बताया। इसमें बताया कि वेनिशिंग में तीन साल बाद दवा खाने की जरूरत नहीं होती। युवा मरीजों को हम इसका ऑप्शन बताते हैं ताकि उन्हें हमेशा दवाइयां नहीं खाना पड़े।
भारत में ही बनते हैं वेनिशिंग स्टेंट
वेनिशिंग स्टेंट मेटल के स्टेंट की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं। देश में 4 से 5 फीसदी लोग इसी का इस्तेमाल कर रहे। ये भारत में ही बनते हैं। कान्फ्रेंस में बच्चों से संबंधित कार्डियक समस्याएं और उनके इलाज की तकनीक पर भी बात हुई। इसके अलावा ओसीटी टेक्निक बताई गई। यह हार्ट के अंदर की चीजें दिखाती है। एक तरह से यह हार्ट के अंदर का अल्ट्रासाउंड होता है।
देशभर से दो सौ डॉक्टर्स शामिल हुए
महिला दिवस के उपलक्ष्य में यह आयोजन किया जाता है। कॉन्फ्रेंस की शुरुआत डॉ. एने प्रिंसी (चेन्नई) के रिसर्च पेपर प्रेजेंटेशन से हुई। इसमें चेन्नई, विशाखापट्टनम, दिल्ली, जयपुर के अलावा स्विट्जरलैंड, बांग्लादेश सहित अन्य देशों के विशेषज्ञों के व्याख्यान हुए। देशभर से 200 से ज्यादा कार्डियोलॉजिस्ट शामिल हुए।