पीपी सर के जन्मदिन पर नेशनल लेवल का पुरस्कार पूर्व सीएम कमलनाथ ने जताई सहमति, शिक्षक-छात्रों ने साझा की यादें

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स्वर्गीय पुष्पेन्द्र पाल सिंह (पीपी सर) को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सभी छात्र-छात्राओं और सामाजिक संस्थाओं की ओर से शुक्रवार को भोपाल के गांधी भवन में स्मृति सभा हुई। स्मृति सभा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ सभा को संबोधित किया। कमलनाथ ने पीपी सर के जन्मदिन पर राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार देने की सहमति जताई। उन्होंने कहा कि पुष्पेंद्र पाल जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में हजारों पत्रकारों को जन्म दिया। मेरा सौभाग्य था, जब मैं मुख्यमंत्री था, तो उनके साथ काम करने का मौका मिला।

उन्होंने कहा कि पीपी सर ने पत्रकारिता के छात्रों को बनाने के लिए जीवन समर्पित किया। वो क्लास रूम के बाहर छात्रों को ज्ञान देते थे। पत्रकारिता के मूल्यों को बनाए रखने के लिए, संस्कृति को ताकत देने के लिए, उनको जोड़ने के लिए पीपी जी ने क्या नहीं किया। इतनी विविधता में भी पीपी जी लगे रहे, हमारे मूल्यों के रक्षक पीपी जी थे। वो हमारे समाज के लिए एक उदाहरण थे। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दी श्रद्धांजलि।

देशभर के विश्वविद्यालय में उनके चाहने वाले
स्मृति सभा में शामिल हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि पुष्पेन्द्र सिंह जी को देश भर के विश्वविद्यालय में चाहने वाले लोग हैं। कई पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अधिकतर शिक्षक भी उनके शिष्य रहे। पीपी सर के स्वभाव और काम से लोग प्रभावित हैं। उनकी यादों को भूला पाना मुश्किल है।

क्लास से लेकर बाहरी जीवन में भी किया छात्रों समर्थन

प्रोफेसर आनंद प्रधान ने कहा कि पुष्पेन्द्र सिंह जी से मेरा परिचय उनकी शिक्षा के दौरान बनारस विश्वविद्यालय में हुआ था। विश्वविद्यालय में मुलाकात की यादें रही। पुष्पेन्द्र सिंह जी एक जैविक शिक्षक थे। जो जमीन से जुड़े थे, जमीन पर ही उन्होंने विस्तार किया। पीपी सर प्रतिबद्धता और लगाव के साथ छात्र छात्राओं के साथ रहते थे। उनके संबंध क्लासरूम से लेकर बाहरी जीवन में भी रहता था।

स्मृति सभा पूर्व सीएम कमलनाथ के साथ अन्य वरिष्ठ पत्रकार भी मौजूद रहे।
स्मृति सभा पूर्व सीएम कमलनाथ के साथ अन्य वरिष्ठ पत्रकार भी मौजूद रहे।

अब ऐसे शिक्षक का मिलना मुश्किल है
डॉ. विजय बहादुर सिंह जी ने कहा कि पुष्पेन्द्र सिंह मरे नहीं, परिस्थितियां ऐसी बनाई कि इसके अलावा उनके पास रास्ता नहीं था। अब मुश्किल हो गया है, ऐसे शिक्षकों का होना जो स्वयं में एक संस्था हो, शिक्षण संस्थान टेबल और कुर्सी से नहीं पहचानी जाती, शिक्षकों से पहचानी जाती हैं। अपने शिष्यों के बीच व्याप्त थे, उन्हीं के बीच जीते थे। पुष्पेन्द्र सिंह जैसे अध्यापकों का रहना एक आशा एक उम्मीद की तरह था।

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