बड़वानी जिले के पाटी ब्लॉक का हाल झोली में टांगकर ले जाने पड़ते हैं मरीज, क्योंकि वनग्रामों में विकास की अनुमति में है अड़चन

देश के दस सबसे पिछड़े ब्लॉकों में शामिल बड़वानी जिले के पाटी ब्लॉक में बीस से ज्यादा गांवों में आज भी मोबाइल नेटवर्क नहीं है। यहां के गांवों तक पहुंचने के रास्ते इतने दुर्गम हैं कि यहां चार पहिया वाहन और बाइक तक नहीं पहुंचती। यहां सिर्फ पैदल ही पहुंच सकते हैं। कोई मरीज बीमार हो जाए तो मोबाइल नेटवर्क और सड़क न होने के कारण एंबुलेंस नहीं बुला सकते। गांव में कोई झगड़ा हो जाए तो पुलिस बुलाने के लिए फोन नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि वनग्राम होने के कारण इन गांवों में विकास कार्याें के लिए आसानी से वन विभाग की अनुमति नहीं मिलती।

यही कारण है कि गांव की पानी की टंकी-पाइपलाइन, सड़क, आंनगबाड़ी, मोबाइल टॉवर का काम पूरा होने में दिक्कत आ रही है। हालांकि ग्रामीणों की लगातार मांग के बाद सरकार ने एक साल पहले प्रदेश के 827 वनग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने की घोषणा तो की है लेकिन इसकी प्रक्रिया बेहद धीमी है।

ब्लॉ क मुख्यालय पाटी से करीब 18 किमी दूर बसा है एक हजार की आबादी वाला देवगढ़ गांव। उबड़खाबड़ रास्तों के कारण इस गांव में आज तक चार पहिया वाहन नहीं पहुंचा। गांव के बाहर का कोई व्यक्ति यहां बाइक चलाकर भी नहीं पहुंच सकता। ग्रामीण ही यहां के दुर्गम रास्तों पर बाइक चलाने का जोखिम उठाते हैं। दैनिक भास्कर टीम पाटी से चिचवानिया तक जोखिम भरे रास्ते पर बाइक चलाकर पहुंच गई। लेकिन चिचवानिया से आगे बाइक नहीं जा सकती थी। देवगढ़ गांव यहां से करीब दो किमी दूर था। यहां पहाड़ीनुमा और उबड़खाबड़ रास्ते पर पैदल ही चल सकते थे।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के उपयंत्री अतुल शर्मा बताते हैं- चिचवानिया से देवगढ़ तक साढ़े सात किमी सड़क साल 2008 में स्वीकृत हुई। लेकिन वन विभाग की सभी अनुमतियां लेने में 8 साल गुजर गए। साल 2016 में सड़क का काम शुरू हुआ। लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण आज तक नहीं बन पाई। यहां तक निर्माण सामग्री पहुंचाना बहुत मुश्किल है। अब दोबारा से टेंडर लगाने की प्रक्रिया की जा रही है।गांव के काकड़ी सोनाछिया कहते हैं- गांव में बीमार और गर्भवतियों को झोली पर टांगकर या कंधे पर बैठाकर लाना अब सामान्य लगने लगा है।

गांव में पानी की टंकी, सड़क और सरकारी भवन नहीं बन पा रहे। क्याेंकि कहीं वन विभाग मामले अटका देता है ताे कहीं दुर्गम रास्तों के कारण निर्माण सामग्री नहीं पहुंच पाती। देवगढ़ के सरपंच अगरया कहते हैं वनग्राम होने से मूलभूत सुविधाओं के लिए वन विभाग के चक्कर लगाते हैं। गांव में नल जल योजना का काम कोई लेने को तैयार नहीं है। जो भी ठेकेदार वहां जाकर स्थिति देखता है तो काम लेने को तैयार नहीं होता क्योंकि वहां तक पहुंचने का रास्ता नहीं है।

इस प्रक्रिया में समय लगेगा, कई स्तर पर काम होना है

“सर्वे के लिए गजट नोटिफिकेशन होगा। इसके बाद सीमा निर्धारण के लिए सर्वे टीम बनाई जाएंगी। दावे आपत्तियां ली जाएंगी। इनके निराकरण के बाद ही वनग्राम को राजस्व ग्राम में बदलने की प्रक्रिया पूरी होगी।”

– चंद्रशेखर बालिम्बे, अपर सचिव, राजस्व विभाग

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