इलाहाबाद विश्वविद्यालय का बड़ा फैसला अब सेवानिवृत्त पीएचडी सुपरवाइजर्स को भी थीसिस में कराए गए शोध का मिलेगा श्रेय

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अब सेवानिवृत्त पीएचडी सुपरवाइजर्स को भी थीसिस में कराए गए शोध का श्रेय मिलेगा। अगर शोध के दौरान प्रोफेसर रिटायर हो जाते हैं या उनकी आकस्मिक मृत्यु हो जाती है तो उनके द्वारा कराए गए शोध का श्रेय विश्वविद्यालयों को उन्हें देना होगा।

रिटायर होने के बाद बदल दिया गाइड
अधिवक्ता शाश्वत आनंद के मध्यम से इस आशय की एक याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी। याचिका में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 8 अक्टूबर 2021 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके पूर्व पीएचडी सुपरवाइजर प्रो. अनुपम दीक्षित को उनकी सेवानिवृत्ति पर बदल दिया गया था और उनके स्थान पर एक नए सुपरवाइजर प्रो. गिरिजेश कुमार को नियुक्त कर दिया गया था।

कम से कम 3 साल का होगा पीएचडी कार्यक्रम
जस्टिस अजय भनोट की एकल पीठ ने अपने फैसले में पाया कि याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद विवविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के पीएचडी कार्यक्रम में 30 अक्टूबर 2017 को बतौर उम्मीदवार दाखिला लिया था। पीएचडी कार्यक्रम के मानक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (एम.फिल./पीएचडी उपाधि प्रदान करने हेतु न्यूनतम मानदंड और प्रक्रिया) विनियम, 2016 के क्लॉज 4.2 द्वारा शासित हैं, जिसमें प्रावधान है कि “पीएचडी. कार्यक्रम कम से कम तीन वर्ष की अवधि का होगा।”

न्यायालय ने पाया कि उक्त विनियम के अनुसार, याचिकाकर्ता अपनी पीएचडी जल्द से जल्द 30अक्टूबर 2020 तक पूरी कर सकती थी। पीएचडी याचिकाकर्ता के पर्यवेक्षक प्रोफेसर अनुपम दीक्षित, जो उसके नामांकन के बाद से उसके शोध की सुपरविजन कर रहे थे। वे 14 जुलाई 2019 को विश्वविधालय से सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद, उन्हें 30 जून 2020 तक शैक्षणिक सत्र के लिए विस्तार दिया गया। प्रोफेसर अनुपम दीक्षित को अंततः तीन वर्षों के लिए विभाग में यूजीसी-बीएसआर फैकल्टी के रूप में नियुक्त किया गया, जो जनवरी 2023 में समाप्त हुआ।

थीसिस में पूर्व गाइड के योगदान को दर्शाना होगा
इस प्रकार, प्रोफेसर अनुपम दीक्षित की सेवानिवृत्ति के कारण, विश्वविद्यालय ने विधिवत रूप से वनस्पति विज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के प्रोफेसर गिरिजेश कुमार को याचिकाकर्ता के पीएचडी सुपरवाइजर के रूप में नियुक्त किया। हालांकि, उपरोक्त के अनुसार, न्यायालय ने माना कि प्रोफेसर अनुपम दीक्षित को, जो भले ही सेवानिवृत्त हो गए थे और एक नए पर्यवेक्षक द्वारा प्रतिस्थापित किए गए थे, थीसिस के शोध में किए के उनके योगदान व सुपरविजन लिए उचित श्रेय दिया जाएगा। उच्च न्यायालय ने इस प्रकार रिट याचिका का निस्तारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अधिवक्ता कुणाल रवि के आश्वासन के क्रम में भी किया की विश्वविधालय याचिकाकर्ता की पीएचडी डिग्री के प्रसंस्करण में तेजी लाने के लिए कदम उठाएगा।

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