सरस्वती शिशु मंदिर आगर में समर्थ शिशु श्री राम कथा हो रही है। इसके समापन पर पंडित श्यामस्वरूप मनावत ने कहा कि मन छोटे होते हैं तो महाभारत का युद्ध होता है। दुर्याेधन अपने मन को बड़ा कर लेता तो कुरुक्षेत्र में रण नहीं होता। अपनी संतानों के लिए मकान, संपत्ति, हवेलियां मत बनाना पर अपने बच्चों के मन को बढ़ा बनाना। मन की शिक्षा की सख्त आवश्यकता है। मन को शरद पूर्णिमा का चंद्रमा बनाना तभी अमृत अमृत बरसेगा।
पंडित मनावत ने भगवान भक्त और मन पर बोलते हुए कहा कि भक्त और भगवान के बीच एक ही रिश्ता भक्तवत्सल का होता है। बालक का स्वभाव ही भक्ति का स्वभाव होता है। गाय और बछड़े का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां भक्त हैं, वहां भगवान जाएंगे। किसी भी नवनिर्माण में बालक को ही लेना चाहिए। नई संभावना बालक में ही तलाशी जाएगी। यह धरती वीवीआइपी की नहीं महापुरुषों की है। आज महापुरुष कम हो रहे हैं और वीआईपी बढ़ रहे हैं। जीवन में बड़ो के साथ रहकर पात्रता बढ़ानी चाहिए। शिक्षा चार चीजों की होना चाहिए। मन का निर्माण मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार(शरीर) से होता है। मनुष्य के जीवन में मन की शिक्षा बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारत का शास्त्र कहता है कि तन से ज्यादा मन का मूल्य है। संकल्प तन से नहीं मन की दृढ़ता से पूरे होते हैं। तन कमजोर हो जाए, मगर मन कमजोर नहीं होना चाहिए। कथा के पांचवें दिन कथा के समापन के जजमान विद्यालय प्रबंध समिति के सचिव प्रमोद मूले ने व्यासपीठ का पूजन किया।
ये लोग रहे मौजूद
इस दौरान बडी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने आरती कर प्रसाद ग्रहण किया। जानकारी अरविन्द सक्सेना ने दी।