नई दिल्ली: इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने भारत को चांद पर पहुंचाकर ही दम लिया. उन्हीं की अगुवाई में भारत का सौर मिशन आदित्य एल-1 भी सफलता पूर्वक लॉन्च हुआ. इन दोनों प्रोजेक्ट की लागत अरबों में थी. बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ कभी पाई-पाई बचाने को जद्दोजहद करते थे.
ISRO चीफ एस. सोमनाथ एक खटारा साइकिल से कॉलेज जाया करते थे. उनके पास बस या दूसरी गाड़ी से जाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे. इसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘निलावु कुदिचा सिम्हांगल’ में किया है. यह आत्मकथा मलयालम में है और अगले महीने रिलीज होगी. सोमनाथ ने अपनी आटोबायोग्राफी में आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहे युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास कहते हैं.
आत्मकथा में उन्होंने अपनी जिंदगी की तमाम बातों के अलावा छोटे-छोटे विवरण साझा किये हैं. बताया है कि किस तरह कॉलेज के दिनों में उनके पास रहने को ढंग का मकान नहीं था. साइकिल से आते-जाते थे, ताकि हॉस्टल की फीस और दूसरे खर्चे उठा सकें.
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ की आत्मकथा केरल स्थित लिपि प्रकाशन से प्रकाशित है और यह पुस्तक नवंबर में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी. किताब में एक गरीब गांव के युवा की गाथा, इसरो के माध्यम से विकास, वर्तमान प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने और चंद्रयान-3 प्रक्षेपण तक की उनकी यात्रा की कहानी है. सोमनाथ ने कहा कि वह इसे एक प्रेरक आत्मकथा के बजाय प्रेरक कहानी कहना चाहेंगे.
PTI से बातचीत में सोमनाथ कहते हैं कि उनकी आत्मकथा, वास्तव में एक साधारण ग्रामीण युवा की कहानी है, जो यह भी नहीं जानता था कि उसे इंजीनियरिंग में दाखिला लेना चाहिए या बीएससी में… वह युवा तमाम दुविधाओं से जूझता है और कई सही फैसले लेता है और अपना मुकाम बनाता है.
इसरो अध्यक्ष सोमनाथ कहते हैं कि, ‘इस पुस्तक का उद्देश्य मेरी जीवन की कहानी को पढ़ाना नहीं है, बल्कि इसका एकमात्र उद्देश्य लोगों को जीवन में प्रतिकूलताओं से जूझते हुए अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना है’.
सोमनाथ कहते हैं कि तमाम युवा प्रतिभाशाली तो होते हैं लेकिन उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है. उनके अनुसार, किताब का उद्देश्य यह बताना है कि जीवन में मिलने वाले अवसरों का उपयोग करना बेहद जरूरी है, चाहे हालात कुछ भी हों.