भोपाल । रेजिडेंट डाक्टरों पर मानसिक दबाव कम करने के लिए सीट छोड़ने पर जुर्माने की व्यवस्था खत्म होना चाहिए। मेडिकल कालेजों में सीट के बदले बांड नीति को खत्म किया जाए। राज्य सरकारों को पत्र लिख कर यह सिफारिश की है राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने। आयोग ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार चाहे तो संबंधित छात्र को एक वर्ष के लिए प्रवेश परीक्षा में शामिल न होने का प्रतिबंध लगा सकती है, लेकिन लाखों रुपये की जुर्माना राशि छात्रों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करती है। एनएमसी के अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड की अध्यक्ष डा. अरुणा वी वणिकर ने कहा कि आयोग को कई शिकायतें मिली हैं, जो विभिन्न संस्थानों में छात्रों के बीच तनाव, चिंता और अवसाद के खतरनाक स्तर का संकेत करती हैं। उन्होंने कहा कि छात्रों के लिए कई बार मानसिक राहत पाने में सबसे बड़ी बाधा यही जुर्माने की राशि होती है। यह भारी भरकम रकम न केवल छात्रों पर वित्तीय दबाव बढ़ाती है, बल्कि आगे बढ़ने में बाधा भी बनती है। इस सिफारिश को करने से पहले आयोग ने सात केस स्टडी की है। इनमें प्रदेश के तीन केस को शामिल किया गया है। इसमें भी दो केस गांधी मेडिकल कालेज के हैं, जिसमें स्टूडेंट ने बांड के दबाव में सुसाइड कर लिया था। इसमें शिशु रोग विशेषज्ञता कर रही भोपाल से मेडिकल छात्र, एमएस सर्जरी कर रहे स्टूडेंट पर काफी मानसिक दबाव बनाया गया। वहीं, एमएस सर्जरी करने आई एक मेडिकल छात्रा ने दबाव में सुसाइड किया था। इस बारे में फाइमा के एग्जीक्यूटिव मेंबर डा. आकाश सोनी का कहना है कि एनएमसी की तरफ से अच्छी पहल है, डाक्टरों को इसका इंतजार है। मध्य प्रदेश सरकार को इसे सबसे पहले लागू कर उदाहरण बनना चाहिए। वहीं भोपाल डीएमई डा. अरुण श्रीवास्तव ने कहा कि हम केंद्र के काउंसलिंग के नियमों के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उसके आधार पर ही प्रदेश मेडिकल एजुकेशन के काउंसलिंग नियम तय होंगे। उसी में बांड को लेकर नियम होते हैं। केंद्र के अनुसार हमारे बदलाव भी होंगे।