बाबा बैजनाथ महादेव का अघोरी स्वरूप शृंगार सजाया गया भक्तो को दिया दर्शन

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आगर मालवा दुर्गाशंकर टेलर)जिले के प्रसिद्ध बाबा बैजनाथ महादेव के दिन प्रतिदिन अलग–अलग स्वरूप में श्रृंगार किया जा रहा हैं सावन माह में बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर पर भक्तो का तांता लगा रहता हैं साथ ही भादव मास के प्रथम बाबा बैजनाथ महादेव को अघोरी स्वरूप में श्रृंगार किया गया आपको बता दे की हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ों ने सैंकड़ों वर्षों तक राज किया. अंग्रेज़ों के अत्याचारों की असंख्य कहानियां आज भी यहां के हवाओं में महसूस की जा सकती है. अंग्रेज़ों ने न सिर्फ़ हमारे इतिहास के साथ छेड़-छाड़ की बल्कि सोने की चिड़िया कहलाने वाले हमारे देश को पूरी तरह खाली कर दिया और अपने घर भरे. सैंकड़ों सालों तक हमारे पूर्वज ग़ुलामी की जंज़ीरों में क़ैद रहे और अपनी जान की क़ुर्बानी देकर हमें आज़ादी दिलाई ब्रितानिया सरकार ने हमारी संपत्ति को लूटी ही, हमारी संस्कृति को भी नष्ट करने की पूरी कोशिश की. ये कोशिश तो हर विदेशी ताकत ने की लेकिन हमारा नाम मिटाने में असफ़ल रहे. अंग्रेज़ ख़ुद को बहुत सभ्य समझते थे और उनका ये मानना था कि अश्वेत लोग असभ्य हैं! हमारी संस्कृति, तौर-तरीकों वे ‘जंगली’ क़रार देते थे.

अंग्रेजों ने बनवाया था ये अनोखा मंदिर

इतिहास की कई किताबों में ये तथ्य दर्ज है कि मिशनरीज़ ने भारत में अंग्रेज़ी तौर-तरीके, ईसाई धर्म, भाषा, रहन-सहन आदि को बढ़ावा देने, प्रचार-प्रसार करने की पूरी कोशिशें की. हमारे पहनावे से लेकर, हमारी बोली तक को पूरी तरह बदलने को तत्पर थे गोरे. मिशनरीज़ ने भारत में असंख्य, चर्च और कैथेड्रल बनवाए, भारतीयता को नकारने की पूरी कोशिश की. अंग्रेज़ों से पहले आए कुछ विदेशी शासकों ने भारतीयता को अपनाने की पहल ज़रूर की थी लेकिन अंग्रेज़ों में ये प्रवृत्ति न के बराबर थी. जैसी कि सभी को एक तराज़ू में तौला जाना सही नहीं है और आज हम एक ऐसी ही कहानी के बारे में जानेंगे

अंग्रेज़ों को मंदिर और मस्जिद को दूषित करने के लिए जाना जाता है लेकिन भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जिसे एक अंग्रेज़ ने बनवाया था. मध्य प्रदेश के आगर-मालवा स्थित बैजनाथ महादेव मंदिर का पुनर्निमाण एक अंग्रेज़ी दंपत्ति ने करवाया था

आगर मालवा की वेबसाइट के मुताबिक, ये मंदिर आगर मालवा के सुसनेर रोड (उज्जैन-कोटा रोड राष्ट्रिय राजमार्ग 27) पर स्थित है. मंदिर बाणगंगा नदी के तट पर बना हुआ है और उसका निर्माण कार्य 1528 में शुरु और 1536 में पूर्ण हुआ. अंग्रेज़ दंपत्ति ने 1883 में मंदिर का पुनर्निमाण करवाया. ये बेहद आश्चर्यजनक बात है कि एक अंग्रेज़ दंपत्ति ने आख़िर एक मंदिर को क्यों बनवाया, जबकि वे ईसाई धर्म का पालन करते हैं

छपे एक लेख के मुताबिक, लेफ़्टिनेंट कर्नल मार्टिन नामक एक अंग्रेज़ अफ़गानों से युद्ध करने गया था. लेफ़्टिनेंट कर्नल की पत्नी आगर मालवा के कैंटोन्मेंट में रह रही थी. वो लगातार अपनी पत्नी को खत लिखकर जंग के मैदान की स्थिति के बारे में बताता युद्ध काफ़ी लंबा चल रहा था और एक दिन अचानक लेफ़्टिनेंट कर्नल की पत्नी को चिट्ठियां मिलनी बंद हो गई

पति की खोज-ख़बर न मिलने से कर्नल की पत्नी को चिंताओं ने घेर लिया. वो घंटों घुड़सवारी कर अपना मन शांत करने की कोशिश करती. एक दिन वो घुड़सवारी करते हुए बैजनाथ महादेव मंदिर के सामने से गुज़री, मंदिर में आरती हो रही थी. मंदिर टूटी-फूटी हालत में था लेकिन शंखध्वनी, मंत्रोच्चारण ने उसे रुकने पर विवश कर दिया

आगे उसने मंदिर के अंदर झांका और देखा कि महादेव की आराधना हो रही है पुजारियों ने महिला के चेहरे पर परेशानी देख उसकी समस्या पूछी लेफ़्टिनेंट कर्नल की पत्नी ने पुजारियों को आपबीती सुनाई. पुजारियों ने उससे कहा कि महादेव सभी की सच्चे दिल से की हुई प्रार्थनाएं सुनते हैं और भक्तों की परेशानियां दूर करते हैं

पुजारियों ने लेफ़्टिनेंट कर्नल की पत्नी को 11 दिन तक ओम नम: शिवाय का जाप करने की सलाह दी लेफ़्टिनेंट कर्नल की पत्नी ने 11 दिनों तक महादेव की आराधना की और पति के सकुशल लौटने पर मंदिर बनवाने का प्रण लिया वो महिला सच्चे दिल से प्रार्थना करती रही और 10वें दिन अफ़्ग़ानिस्तान से एक संदेशवाहक उसके पति का ख़त लेकर पहुंचा

उस ख़त में लिखा था, ‘मैं तुम्हें लगातार ख़त भेज रहा था लेकिन एक दिन अचानक पठानों ने मुझे घेर लिया मुझे लगा मैं नहीं बचूंगा. अचानक एक लंबी जटाओं, बाघ की छाल ओढ़े, त्रिशूल लिए भारतीय योगी सामने आया उसने अफ़ग़ानों को मार भगाया उसकी वजह से हार जीत में बदल गई. उसने मुझसे कहा कि मुझे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है और वो मुझे बचाने आए हैं क्योंकि वो मेरी पत्नी की प्रार्थना से बेहद प्रसन्न है

लेफ़्टिनेंट कर्नल मार्टिन युद्ध से लौटा पति पत्नी ने एक-दूसरे को अपने साथ घटी दिव्य घटनाएं बताईं दोनों ही महादेव के भक्त बन गई और 1883 में बैजनाथ महादेव मंदिर के पुनर्निमाण के लिए 15000 रुपये दान किए. मंदिर के बाहर ये जानकारी एक पत्थर पर खुदी है. दोनों पति-पत्नी भारत से इंग्लैंड लौट गए लेकिन आजीवन महादेव के भक्त बने रहने का प्रण लिया

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