मध्य प्रदेश जन अभियान परिषद विकासखंड घटिया सेक्टर रुई के आदर्श गांव पिपलिया हामा में जल गंगा संवर्धन अभियान के अंतर्गत नवांकुर संस्था सुरभि जनकल्याण समिति के द्वारा पंचायत भवन में वट सावित्री व्रत पूजा और पर्यावरण को लेकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया

मध्य प्रदेश जन अभियान परिषद विकासखंड घटिया सेक्टर रुई के आदर्श गांव पिपलिया हामा में जल गंगा संवर्धन अभियान के अंतर्गत नवांकुर संस्था सुरभि जनकल्याण समिति के द्वारा पंचायत भवन में वट सावित्री व्रत पूजा और पर्यावरण को लेकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया नवांकुर संस्था के अध्यक्ष रूपेश परमार ने ग्रामीण महिलाओ को बताया कैसे वट सावित्री व्रत न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वृक्ष संरक्षण और पर्यावरण चेतना के लिए भी एक प्रेरणादायक पर्व है। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ जुड़ने, उसे सम्मान देने और उसकी रक्षा करने का संदेश देता है….

वट सावित्री व्रत में वट (बरगद) वृक्ष की पूजा की जाती है, उसकी परिक्रमा की जाती है, और उसे रक्षा सूत्र (सूत) से बाँधा जाता है। यह प्रक्रिया पेड़ को काटने या नुकसान पहुँचाने के बजाय उसकी सुरक्षा और दीर्घायु की भावना को बढ़ावा देती है। इस पूजा के माध्यम से महिलाओं में यह भावना प्रबल होती है कि पेड़ पूज्य हैं, उन्हें बचाना और संरक्षित करना हमारा धर्म है।

वट वृक्ष दिन-रात ऑक्सीजन प्रदान करता है।

इसकी छाया बहुत शीतल होती है और यह भूमि की नमी बनाए रखने में मदद करता है।

इसकी शाखाएँ और लटकती जड़ें पक्षियों और कीटों का आश्रय बनती हैं।

यह वायु प्रदूषण को कम करने में सहायक है।

वट वृक्ष की छाल, पत्ते, दूध और जड़ें आयुर्वेद में अनेक रोगों के उपचार में प्रयुक्त होती हैं – जैसे मधुमेह, दस्त, दंत रोग आदि।

जब महिलाएँ इस वृक्ष के चारों ओर श्रद्धा से परिक्रमा करती हैं और कथा सुनती हैं, तो उनके मन में वृक्ष के प्रति श्रद्धा और स्नेह विकसित होता है। यह जुड़ाव वृक्षों की रक्षा की दिशा में एक गहरी मानवीय चेतना को जन्म देता है।

यह व्रत एक सामूहिक सांस्कृतिक आयोजन भी बन चुका है जिसमें अनेक महिलाएँ एकत्र होकर वृक्ष के नीचे पूजा करती हैं। इससे यह संदेश समाज में फैलता है कि वृक्ष हमारे पूज्य हैं, हमें उन्हें बचाना चाहिए, न कि काटना।

कई स्थानों पर अब वट सावित्री व्रत के अवसर पर वट वृक्ष के पौधे लगाने की परंपरा भी शुरू हो गई है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बहुत ही प्रभावी कदम है।

वट सावित्री व्रत प्रकृति पूजन, वृक्ष संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता का सुंदर संगम है। यह हमें सिखाता है कि धर्म और पर्यावरण दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि हम अपने पर्वों को केवल कर्मकांड न मानकर उनके पीछे की प्रकृति-मैत्री भावना को समझें, तो हम एक हरित और संतुलित जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं। इस कार्यक्रम में ग्राम प्रसफुटन समिति के अध्यक्ष एवं सरपंच प्रतिनिधि श्री दिलीप सिंह जी ने भी अपने विचार व्यक्त किये और अंत में महिलाओं को जल संरक्षण पौधारोपण साफ सफाई स्वच्छता रखने की शपथ दिलाई गई

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