भगवान श्री कृष्णा का श्रृंगार प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है? चेतना भारती जी

*भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण हैचेतना भारतीजी*

 

हाटपीपल्या /भविष्य दर्पण/ नीरज सोलंकी

 

ग्राम चासिया में चल रही परम सुमंगल आनंददायिनी श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस में निमाड़ की गौरव मंडलेश्वर की सुविख्यात कथावाचिका सुश्री दीदी चेतना भारती ने कहा की भगवान कृष्णलला अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं करते है जिनमे माखन चोरी करके भक्तो के जन्म जन्मांतर के पाप चोरी कर लेते है, गोवर्धन धारण करके तथा पूजन करके पर्वतो की महिमा का बखान करते है, तो कभी ब्रज की माटी खाकर भारत की माटी की महिमा को बतलाते है। कभी बास की बासुरी बजाकर प्रकृति में संगीत की मिठास घोल देते है , तो कभी गाय चराकर गौमाता की महिमा बतलाते है। पूर्ण ब्रम्ह भगवान श्री कृष्ण का श्रृंगार भी पूर्ण प्राकृतिक है; सिर पर मोर का मुकुट, कानो में कनेर के फूल, गले में वैजयंती के पुष्पों की माला, हाथ में बास की बासुरी इत्यादि। कृष्ण जैसा प्यारा व्यक्तित्व संसार में अन्यत्र कहीं देखने को नही मिल सकता इसीलिए तो श्री कृष्ण हिंदुओ के दस अवतारों में पूर्ण अवतार कहे जाते है। राधामय और कृष्णमय हो संपूर्ण ग्राम जैसे वृंदावन ही बन गया है। कथा का आयोजन समस्त ग्रामवासियो द्वारा कराया जा रहा है।

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