CM के जीवन पर किताब शिवराज बोले- मलुआ दादा के पैसे से रामायण कराने का विरोध हुआ… तो उन्हीं के चंदे से कराई रामायण

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कुशाभाऊ ठाकरे हाॅल (मिंटो हाॅल) में रविवार को स्वदेश ग्वालियर के स्वर्ण जयंती समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जीवन पर लिखी गई किताब ‘विलक्षण जननायक’ का विमोचन महामंडलेश्वर आचार्य अवधेशानंद गिरि ने किया। समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने जीवन से जुड़ा गांव का एक किस्सा सुनाया और बताया कि उनके जीवन में संवेदनाएं कैसे जागती रहीं।

शिवराज ने बताया कि वह अपने गांव जैत में रामायण का अखंड पाठ किया करते थे। 24 घंटे में रामचरित मानस का पाठ पूरा कर लेते थे। गांव में अनुसूचित जाति के मलुआ दादा थे। उनके घर में कई वर्षाें के बाद बेटी का जन्म हुआ। एक दिन मलुआ दादा मेरे पास आए। कहा कि भैया मेरे घर बिटिया का जन्म हुआ है। क्या मैं भी रामायण के लिए चंदा दे सकता हूं? मैंने कहा- क्यों नहीं दे सकते, जरूर दो। मलुआ दादा ने दो रुपया चंदा दे दिया। रामायण में पांच-छ: रुपए खर्च होते थे। इसके लिए सभी मिलकर चंदा करते थे।

अब जैसे गांव में पता चला कि मलुआ दादा की चंदे से रामायण होगी, तो कई लोगों ने मुझे बुलाया। कहा कि हम मर गए क्या। मैने कहा, क्या हुआ, फिर वो बोले मलुआ के पैसे से रामायण होगी। मैंने कहा- उनके घर बेटी पैदा हुई है। लेकिन गांव के लोग बोले कित्ते पैसे चाहिए, हम दे देंगे, उनके यह पैसे वापस कर। इसके बाद से ही संवेदना जागी कि मलुआ दादा क्या सोचेंगे कि बेटी का जन्म हुआ है। रामायण के लिए चंदा दिया है। इस बात को लेकर मैं भी अड़ गया कि अब चाहे जो कुछ हो जाए। अब रामायण तो मलुआ दादा के चंदा से ही होगी। उसके बाद से मंदिरों में आना-जाना शुरू हो गया।

इस कार्यक्रम को लेकर असमंजस में था

शिवराज ने कहा कि इस कार्यक्रम को लेकर असमंजस में था। मन में विचार था कि व्यक्ति पर केंद्रित किसी भी ग्रंथ या पुस्तक प्रकाशन आमतौर पर हमारी परंपरा के विरुद्ध है। इससे पहले भी दो-तीन किताबें बनी। उनका मैंने विमोचन नहीं होने दिया, लेकिन हम एक परंपरा के व्यक्ति हैं। कार्यकर्ता हैं। इस व्यवस्था से सोचा जाए तो वही कार्यक्रम संपन्न होता है। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश सहित बीजेपी के कई नेता व अन्य अतिथि मौजूद रहे।

एक तानाशाह भी गुड गवर्नेंस दे सकता है : शिव प्रकाश

राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने कहा कि उत्तर कोरिया में एक राजा है। उसके यहां भी गुड गवर्नेंस हैं। कानून का शासन, आर्थिक उन्नति, सभी लोगों का समावेश, योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन, पारदर्शिता और जवाबदेही को मिलाकर गुड गवर्नेंस बनती है। लेकिन रावण का शासन कैसा था। लंका तो स्वर्णमयी थी। उन्होंने कहा कि तानाशाही प्रवृत्ति के व्यक्ति भी अपने क्षेत्र के अंदर गुड गवर्नेंस दे सकते हैं। इसलिए गुड गवर्नेंस आधार नहीं हो सकता। शासन का आधार संस्कृति है। उन्होंने कहा कि संस्कृति राष्ट्र की आत्मा है। संस्कृति विहीन राष्ट्र, विकास और योजनाएं अंग्रेज भी दे रहे थे।

उन्होंने भी विकास दिया था। शिवप्रकाश ने कहा कि इस देश की राजनीति में एक नई दिशा प्रारंभ हुई है। नई दिशा के लिए ही जनसंघ शुरू हुआ था। संस्कृति को मानकर विकास करेंगे तो स्थाई विकास होगा। यही करना ही हमारा लक्ष्य है। सेवा, संवेदना और संस्कृति के आधार पर इस देश का विकास और श्रेष्ठ प्रतिमान खड़े करना यह आज की आवश्यकता है।

भारत की संस्कृति में टॉलरेंस की बात नहीं : महामंडलेश्वर अवधेशानंद

महामंडलेश्वर अश्वधेशानंद ने कहा कि ‘टॉलरेंस’ एक प्रचलित शब्द है। यह छोटा शब्द है। भारत की संस्कृति में टॉलरेंस की बात नहीं है, यहां आत्म स्वीकृति की बात है। यह संस्कृति पूरे विश्व को अपना परिवार मानती है। उन्होंने कहा कि ओंकारेश्वर में स्टेच्यू ऑफ वननेश का जो काम होने जा रहा है। यह संस्कृति को फलक पर लेकर जाएगा। यह बड़ा काम है। यह सामान्य कार्य नहीं है।

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